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________________ २१४ अष्टावक्र-गीता भा० टी० स० बंधाय विषयासक्त मुक्तये निविषये स्मृतम् ॥ १॥ मनुष्यों का मन ही बंध और मोक्ष का कारण है । विषयों में जब मन आसक्त हो जाता है, तब वह मन बंध का हेतु होता है। जब विषयों की आसक्ति से रहित होता है, तब वही मन मुक्ति का हेतु होता है ।। १ ॥ अष्टावक्रजी कहते हैं कि हे जनक ! इतना ही बंध-मोक्ष का विशेष ज्ञान है। इसको तुम भली प्रकार जानकर जैसी तुम्हारी इच्छा हो, वैसा तुम करो ।। २ ।। मूलम् । वाग्मि प्राज्ञमहोद्योगं जनं मूकजडालसम् । करोति तत्त्वबोधोऽयमतस्त्यक्तो बुभुक्षुभिः ॥ ३ ॥ पदच्छेदः । वाग्मिप्राज्ञमहोद्योगम्, जनम्, मूकजडालसम्, करोति, तत्त्वबोधः अयम्, अतः, त्यक्तः, बुभुक्षुभिः । शब्दार्थ । | अन्वयः । शब्दार्थ। अयम् यह करोति करता है तत्त्वबोधः-तत्त्वज्ञान अतः इसी कारण वाग्मिप्राज्ञम- अत्यन्त बोलने वाले होद्योगम् । पण्डित महाउद्योगी । पुरुषों करके जनम् पुरुष को अयम् यह त्याग किया गया अन्वयः। बुभुक्षुभिः- भोगाभिलाषी मूकजडालसम= गूंगा जड़ और मूकजडालतम्- आलसी त्यक्ता है।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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