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________________ बारहवाँ प्रकरण। १९१ मूलम् । एवमेव कृतं येन सकृतार्थो भवेदसौ। एवमेव स्वभावो यः स कृतार्थो भवेदसौ ॥८॥ पदच्छेदः । एवम्, एव, कृतम्, येन, सः, कृतार्थः, भवेत्, असौ, एवम्, एव, स्वभावः, यः, सः, कृतार्थः, भवेत्, असौ ।। अन्वयः। शब्दार्थ ।। अन्वयः। शब्दार्थ । येन-जिस पुरुष करके यःजो एवम् एव-क्रिया-रहित एवम् एव=ऐसा ही अर्थात् स्वतः ही स्वरूपम् स्वरूप स्वभावः स्वभाववाला है साधनवशात् साधनों के वश से सः असौ-सो वह कृतम्=किया गया है कृतार्थः कृतकृत्य सः असौ-वह पुरुष भी भवेत् होता है कृतार्थः कृतकृत्य किंवक्तव्यम्=इसमें कहना ही क्या है भवेत् होता है भावार्थ । जिस पुरुष ने इस प्रकार संपूर्ण क्रियाओं से रहित अपने स्वरूप को जान लिया है, वही कृतार्थ अर्थात् जीवन्मुक्त होता है। प्रश्न-जीवन्मुक्त का लक्षण क्या है ? उत्तर-ब्रह्मैवाहमस्मीत्यपरोक्षज्ञानेन निखिलकर्मबन्धविनिर्मुक्तो जीवन्मुक्तः।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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