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________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासहिता। (६७) अनन्तर पुरुष कर्मफलका भोक्ता नहीं होयहै । जन्म नहीं होनेमें यह श्रुति प्रमाणहै ( "ने स पुनरावर्तते' ) ॥ ९२ ॥ स्वप्नदेहोयथाध्यस्तस्तथैवायहि देहकः ॥ अध्यस्तस्य कुतोजन्म जन्माभावे हि तत्कुतः ॥ ९३॥ सं. टी. पूर्वोक्तं दृष्टांत विवृण्वन्सकारणजन्माभावे युक्तिमाह स्वप्नेति. जन्माभावे तत्प्रारब्धं कुतः स्पष्ट मन्यत् ॥ ९३॥ भा. टी. स्वमके देहकी तरह यह देह अध्यस्त (विनष्ट) है फिर जन्म किसप्रकार होसकै है इससे किसमकार प्रारब्ध अर्थात् पर्व जन्मके कर्मफलको भोगसकै है । क्योंकि जब जन्महोय तौ कर्म भोगै जन्मही नहीं तौ कर्म कहां ॥ ९३ ॥ उपादानं प्रपंचस्य मृद्भांडस्येवकथ्य. ते ॥ अज्ञानं चैववेदांतैस्तस्मिन्नष्टेक विश्वता ॥ ९४॥ सं. टी. ननु देहादिप्रपंचस्य यतोवेत्यादिश्रुतेः सत्य ब्रह्मजन्यत्वात्कथंप्रातिभासिकत्वमितिचेदुच्यते उपादानमिति अब कारणं द्विविधं निमित्तोपादानभेदात् तेत्र निमित्तं नामोत्पत्तिमात्रकारणं उपादानंतूत्पत्तिस्थितिलयकारणं तत्र वेदांतैः । मायांतु प्रकृति वि
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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