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________________ अपरोक्षानुभूतिः। विवेकादिक्रमेण हेतुहेतुमद्भावस्तथापि वैराग्यस्यासाधारणकारणतां द्योतयितुमादौ ग्रहणं कृतमिति बोद्धव्यम् ॥३॥ ___ भा. टी. अपने २ वर्णका धर्म धारण करनेसे अर्थात् बालणोंको पढना पढाना यज्ञकरना यज्ञकराना दानलेना दान देना इन ६ छः कर्मोंकरके क्षत्रियको प्रजापालन करनेसे वैश्यको खेतीका कर्म करनेसे शूद्रको ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यकी सेवा करनेसे और आश्रमधर्म धारण करनेसे अर्थात् ब्रह्मचर्यअवस्थामें गुरुसेवन करनेसे गृहस्थ अवस्था में पुत्र उत्पन्न. करनेसे वानप्रस्थ अवस्थामें स्त्रीसहित तथा इकला जाकर ब्रह्मचर्य धारणकर अमिहोनादि कर्म तथा ईश्वरकी आराधना करनेसे सन्यस्त अवस्थामें सर्व कर्म त्याग करने और चान्द्रायणादि व्रत करनेसे हरिकीर्तनकर ईश्वरको प्रसन्न करनेसे मनुष्यको वैराग्य, नित्य अनित्य वस्तुका विवेक, -शम दम आदि सम्पत्ति और मुमुक्षुत्व, यह चार साधन प्राप्त होय हैं ॥३॥ ( वैराग्यस्वरूप ) ब्रह्मादिस्थावरान्तेषु वैराग्यं विषयेष्वनु ॥ यथैव काकविष्ठायां वैराग्यं: तद्धि निर्मलम् ॥४॥
SR No.034085
Book TitleAparokshanubhuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Vidyaranyamuni
PublisherKhemraj Krushnadas
Publication Year1830
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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