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________________ स्वरशास्त्र. शिष्यः – हे गुरुदेव ! मारा उपर कृपा करो भने जे ज्ञानथी सर्व बाबत जाणी शकाय ते ज्ञान मने जणावोः आ जगत क्यांथी उद्भव्युं ! ते केवी रीते टकी रहुं छे ? ते केवी रीते अदृश्य थाय छे ? आविवनुं तत्त्वज्ञान हे देव ! मने आपो. गुरुः– आ विश्व पांच तत्त्वमांथी उद्भव्युं, ते पांच तत्वथी टकी रधुं छे, अने पांच तत्वमां अदृश्य-विलय थशे. आ तत्त्वोवढे ज बिश्वव्यवस्था जाणी शकाय छे. शिष्यः -- तत्त्वोना ज्ञाता आ तत्त्वोने बधाना मूळरुप गणे छे; पण हे देव ! ते तत्त्वोनुं स्वरुप केर्वु छे, ते विषय पर प्रकाश पाडो. गुरुः– अव्यक्त, निराकार, प्रकाश आपनार एक महान् शक्ति छे, मांथी प्रथम आकाश प्रकट थयुं अने ते आकाशमांथी वायु प्रकट थयो. वायुमांथी अग्नि उत्पन्न थयो, अग्निमाथी जल प्रकट थयुं, अने जळमांथी छेवटे पृथ्वी उद्भवी. आ पांच तत्वो छे. आ पांच तत्वोथी जगत् प्रकट थयुं; भा पांच तत्वोथी जगत् टकी र छे; आ पांच तत्त्वोमां जगत् विलय पामे छे; अने करीथी तेज त 'वोमा जगत् प्रकट थाय छे. शरीर पण पांच तत्वोनुं बनेलुं छे. हे शिष्य ! पांच तत्वो मनुsaना शरीरमां सूक्ष्मरुपे रहेलां छे. जेओ भा तत्वोना अभ्यास पाचक तथी मंडया रहे थे, तेभो ते सहधोने जाणी शके के. Scanned by CamScanner
SR No.034084
Book TitleSwarshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1910
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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