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________________ प्रस्तावना. रु अने शिष्यना संवाद रुपे आ पुस्तकमां स्वर जेवा उपयोगी विषयतुं स्पष्टीकरण करवामां आव्यु छे. आ ग्रंथ कोइ जैन शास्त्रमाथी सार ARE खंघीने रचायलो नथी पण उपनिषदोना आधारे एक विद्वाने लखेलो छे. शरीरसुखाकारी, संकटनिवर्तन अने ध्यान जेवी बाबतमां आ ग्रंथमांनुं ज्ञान घणुं उपयोगी थइ पडे तेम छे एम समजी गुजराती भाषामा त्हेने प्रगट करवानुं उचित धार्यु छे. वाचको जूदा जूदा धर्म अने जूदी जूदी मान्यतावाळा हशे; परन्तु तेओ दरेक जे वात पोताने उपयोगी लागे एटली ज ग्रहण करी बाकीनी वात पर आत्मक्लेश करवाना विचारथी दूर रहेशे तो विनामूल्य पुस्तको फेलाववाना साहसमां समायलो द्रव्यव्यय अने परिश्रम सफळ यो समजी ए साहसने वधारे आगळ खेंचवानुं बनी शकशे. वा. मो. शाह. '-* Scanned by CamScanner
SR No.034084
Book TitleSwarshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1910
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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