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________________ (२१ ) (१) धन (२) लडाइमां विजय (३) कार्यनुं शुभाशुभ फळ. तस्वोने लीधे ज कोइ पग कामर्नु सार के माटुं परिणाम आवे छे; तत्वोने लीधे ज विजय के पराभव थाय छ; अने तत्वोने कीधे ज धन पुष्कळ के ओछु म छे. आ तत्वो ग रुपमा प्रकट थाय छे. शिष्यः-हे देव : आ संसाररुपी मोटा समुद्रमा मनुप्यनो मित्र भने मगार कोग छे ? गुरु:-प्राण एज मोटो मित्र छ; प्राग एज मोटो मददगार छे. हे शिज्य : प्राग करता वधारे सारो बीजो कोइ मित्र नथी. शिष्यः-प्रागनी शक्ति शरीरमा केवी रीते रहेली छे ? शरीरमा प्राण देखाय छे ए शुं ? प्राण तत्वोमा कार्य करी रहेलो , सेने योगीओ शी रीते जाणे छे ? - गुरुः–शरीररुपी नगरमा प्राण ए मोटो रक्षणकर्ता छे; ज्यारे प्राण अंदर जाय छे स्यारे तेनी लंबाइ दस आंगल होय छे; ज्यारे से व्हार . नोकळे छे त्यारे तेनी लंबाइ बार आंगळ थाय छे. . चालती वखते ते २४ आंगळ थाय छे; दोडती वखते ४२ आंगळ थाय छे. मैथुन समये ते ६५ आंगळ थाय छ; अने उघमा १०० आगळ थाय छे. हे शिष्य ! प्रागनी साधारण लंबाइ १२ आंगळ छे. खाकामा भने बोलवामा ते वधीने १८ आंगळ थाय छे. जो प्राण एक आंगळ ओछो थाय तो तेना परिणामे मनुष्य तृष्णाभोथी छुटे छे; जो बे आंगळ ओछो थाय तो शरीरमा भानंद न्यापे; भने जो अग आंगळ ओछो थाय तो कवित्व शक्ति प्रकट थाय छे. ... जो प्राग चार आंगळ ओछो थाय तो वक्तृत्व कळा प्रकाये है, जो पांच आंगळ ते ओछो थाय तो अंतरनी दृष्टि खुलवा मांडे के जो छ आगळ ओछो थाय तो मनुष्य उंचे उही शके छे; जो सात भांगळ प्राण ओशो थाय तो ते घणी ज त्वराथी धारे त्या जइ शके छे.. Scanned by CamScanner
SR No.034084
Book TitleSwarshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1910
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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