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________________ ल्प करवो उचित नथी, खोटां काम करयां तेनी शिक्षा भोगववी ज जोइए. एवी सुंदर भावना लावीने ज्यारे जीव समभावमा रहे छे त्यारे ते उपक्रमी कर्मने उपक्रम लागे छे अने तेथी जलदी ते कर्मनो नाश थइ जाय छ; अहिं आत्मानी पुद्गल संजोगे राग द्वेष रूप परिणती न थइ ए ज चिकाश ओछी थइ तेथी पूर्वनां जे कर्म हतां ते खरी गयां. वली शुभ कर्मने पण उपक्रम लागे छे ते एवी रीते के ज्यारे जीवने पुन्यना उदयथी धन, दोलत, पुत्र, घर, हाट विगेरे बधी वस्तु सुंदर मले छे त्यारे जीव अहंकारमा लीन थइ जाय छे. आवी रीते अहंकार करवाथी शुभ कर्मने उपक्रम लागे छे. कारण जे शभकर्म बंधाय छे ते मंद राग द्वेषथी बंधाय छे अने ज्यारे अहंकारादि जोर करे छे त्यारे तिव्र राग द्वेष थाय छे ते अशुभ छे ने अशुभ तेथी शुभना पुद्गल भोगवाय त्यारे शुभ ओर्छ थयु ए ज़ उपक्रम लाग्यं. माटे उत्तम पुरुष गमे तेटली ऋद्धि मले तो पण अहंकार करता नथी पण उलटा भावना भावे छे के-" पूर्वे धर्मकरणी करी तेना प्रभावे शुभकर्म उपार्जन थयुं छे तो हवे मोहने वश पड़ी हुं अहंकार करी कर्म वांधीश तो वली दुर्गतिमां जq पडशे, आ पुद्गलिक सुख तो अस्थिर छे, संसारी वस्तुनो संयोग ते वियोग संयुक्त छे माटे तेमां मद करवो ते योग्य नथी. वली तेवा सुखमां मग्न थq ते पण योग्य नथी. म्हारे तो आत्मस्वभावमां स्थिर रहेवू ए ज योग्य छे.” आवी भावना भाववावाला उत्तम जीवना शुभ कर्मने उपक्रम लागतां नथी पण उलटां शुभ कर्म पुष्ट थाय छे. . ४७ प्रश्न:-शुभकर्म पुष्ठ थवाथी ते पण मुक्तिने अटकावे छे माटे पुन्य तथा पाप बन्ने छोडवां योग्य कह्यां छे तेनं केम ? उत्तरः-शुभकर्म बांधती वखत राजा, चक्रवर्ति, देवता, शाहुकार इत्यादि थइने पुद्गलिक सुख भोगववानी इच्छाओ राखवाथी जे पन्य वंधाय छे, तेवा पुन्यनी इच्छा राखवानो तो निषेध ज छे. एवी इच्छा तो रा. खवी ज़ नहीं, कारण के एवी इच्छाए करी जे. पुन्य बंधाय छे ते पापानुबंधी पुन्य बंधाय छे. एटले ते पुन्य भागवतां पाछु पाप बंधाय छे, तेथी Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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