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________________ ( ३२ ) रहे तो नथी अने रागद्वेषमय परिणति रहेती नथी एटले कर्म लागतां नथी. जेम के दूध मध्ये घृत रहेलुं छे ते काढवा सारु प्रथम दहिं बनावं, पछी तेने वलोवीने माखण काढं, माखणने तपावीने घी कखुं. ते काढला घृतनुं फरीथी दूध थइ शकतुं नथी. घृत ज कायम रहे छे तेवी जरी आत्माना अनुक्रमे प्रगट थयेला गुण अवराता नथी. ४५ प्रश्नः - कर्म श्रावे छे ते देखातां नथी, माटे आवे छे ते शा अनुमानथी सिद्ध थाय ? उत्तरः-कर्भ पुद्गलिक पदार्थ छे. टाढना थंडा पुद्गल ज्यारे आपण स्पर्श करे छे त्यारे जाणीए छीए के टाढ बाबा लागी, परंतु आपणे थंडना पुद्गल जोइ शकता नथी. छतां निश्चय करीए छीए के थंडा पुद्गल स्पर्श करवा लाग्या. सुगंधी पुद्गल देखी शकता नथी, पण नाकमां खुशबो जणावाथी जणाय छे के अहियां सुगंधी पदार्थ छे. गरमी लागे छे पण तेना पुगलने आवता देखता नथी. पवन आवे छे तेने देखता नथी पण शरीरमां स्पर्श थवाथी जणाय छे के पवन श्रावे छे; तेम कर्म आवे छे ते आपणे देखता नथी परंतु ज्यारे कर्म उदय आवे छे अने तेनां फल जोवामां आवे छे त्यारे सिद्ध थाय छे. पूर्वे कर्म बांधेलां होय छे तेने योगे सुख दुःख प्राप्त थाय छे. कोइ सुखी, कोइ दुःखी एम सर्वत्र जणाय छे. कोइ माणस वर्त्तमान कालमां सारां कृत्य करे छे, वली अकलमां पण खामी नथी, दुःख थाय तेवुं कार्य पण हाल करतो नथी, छतां ते दुःखी होय छे ए सर्व पूर्व कर्मना योगथी समजवुं. वली केटला एक माणस लुच्चाइ, ठगाइ, चोरी विगेरे करे छे, जुटुं बोले छे, सारा मा स उपर कलंक मूके छे, हिंसा करवामां तत्पर होय छे एवा अधर्मना करनारा सुखी देखाय छे तेनुं कारण एटलुं ज छे के श्रा भवमां जे सुख भोगवे छे ते पूर्व भवमां करेला सुकृत्यने लीधे छे परंतु आ भवमां करेला कृत्यनां फल आवता भवमां भोगवत्रां पडशे. क्वचित् आ भवमां करेलां कर्म आ भवमां पण उदय आवे छे. केटलाएक राजाओ परस्त्रीना लंपट - Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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