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________________ जेश्रो आज्ञाना श्राराधक होय तेओ क्रियाथी विमुख होय नहीं; कारण के ज्ञाने करीने पोताना आत्मानुं स्वरूप तथा पुद्गलनुं स्वरूप जाण्युं छे तेथी ते जाणे छे के “अहो! आ पुद्गल तो जड पदार्थ छे. पुद्गलने बशे करीने विपरीत बुद्धि थइ तेथी परवस्तु जे धन धान्यादिक तथा स्त्री कुटुंबादिक तेने आ जीवे पोतानां करीने मान्यां अने तेथी कर्मबंध करीने चारे गतिमां रोलायो, अनेक प्रकारनां दुःख भोगव्यां. श्रा भवमां भाग्यना उदयथी श्री जिनराजनो मार्ग प्राप्त थयो अने कर्मे विवर आ. प्युं तेथी मने संयमनी प्राप्ति थइ छे तो हवे म्हारे आत्मतत्वमा रमण करवू ज घटे छे. अनादिकालनो जीवने परभायमा रमवानो अभ्यास छे तेथी म्हारी दशा वारंवार पुद्गलभावनी थाय छे ते पलटावा माटे अशुभ क्रिया छोडीने शुभ क्रियामां प्रवर्तवू योग्य छे." या प्रमाणेनी भावनाथी संयमनी क्रिया करे छे अमे ते क्रिया, कर्म निर्जरानी हेतुभूत थाय छे. वली योगादिकनी जे शुभ प्रवृत्ति थाय छे तेथी जो के शुभकर्म बंधाय छे परंतु ते कर्म मुक्ति प्राप्त करवामां सहाय्यकारी थाय छे, विघ्नकारी थतां नथी. एवा शुभ कर्मना योगथी आर्यक्षेत्रमा जन्म, पांच इं. द्रिश्रो संपूर्ण, धर्मिष्ट कुल, स्वजनादिक धर्मकार्यमां अनुकूल, निरोगी शरीर, देव गुरुनी जोगवाइ विगेरे साधनोनी प्राप्ति थाय छे. ए साधनो मल्या विना जीवथी मुक्तिमार्ग, श्राराधन थइ शकतुं नथी. जेओ ज्ञानवंत छे तेओ सहजे क्रियामां प्रवर्ते छे. ज्ञानगुण वडे वस्तुस्वरूपने जाणवाथी संसारनी अनित्यता समजीने जेमणे चारित्र अंगीकार कर्य ठे एवा मुनि महाराज निरंतर विचारे छे के सर्वे जीवो सत्ताए तुल्य छे, पण कर्मे करीने जूदी जूदी गतिने पाम्या छे. ते सर्वे सुखना अभिलाषी छे. दुःखने इच्छता नथी. जेम म्हारा शरीरने कोइ कांइ पीडा उपजावे छे तो मने दुःख थाय छे तेम सर्व जीवने पण दुःख थाय छे. माटे म्हारे कोइ पण जीवने दुःख उपजावq घटतुं नथी. आवा विचारथी ते. ओ ज्यारे ज्यारे उठे छे, बेसे छे, सुए छे, चाले छे त्यारे यत्नापूर्वक प्रवर्ते Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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