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________________ ( २४६) गत्मा नथी. जे जे बने ते जाणवू एज महारो धर्म छे, शरीगदिके जे उपाधि थाय छे, तेथी म्हारां कर्म भोगवाय छे. तेथी पण म्हारो आ. त्मा निर्मल थाय छे, एटले ए पण आनंद थवा, कारण छे. हुं शा कारण दिलगीर थउं? के विकल्प करुं? भगवान् श्रीमत् महावीरस्वामी महाराजने संगम देवताए अत्यंत उपसर्ग कर्या; तो पण समभाव छोड्यो नहि, तेम हुं पण समभावमांज रहुं. कंइ पण चीज म्हारी न थी तो हुँ शी बाबतनो विकल्प करुं ? आ रीते निर्विकल्पपणे सर्वथा रहेशे तो केवलज्ञान पामी सिद्धिने वरशे, अने तेथी उतरती विशुद्धि वाला पण गुणस्थाननी हदमा रहेशे तो सातमे भवे सिद्धिने वरशे. माटे संथारो करवो अने समभावे रहेवानो उद्यम करवो. सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणं । प्रधानं सर्व धर्माणां; जैन जयति शासनं ॥ १॥ वली भत्तपञ्चख्खाण पयन्नामां संथारो करनारने गाथा ४१ मीमां शीतल समाधी सारु नागकेसर, तज, तमालपत्र, एलची, साकर ए वस्तु दूधमां नांखी दूध उकाली दूध टाटुं करीने अनशन करनारने पावं एथी अन शन करनारने शीतलता रहे ए मुजब का छे. श्रावक धनवान होय तो साते क्षेत्रे धन वापरीने देव गुरुने वादीने अनशन करे. अनशन नो लाभ ए पयन्नामां बहु कह्यो छे. आ मुजब अनशन विधि सामान्य छे. प्रश्नः-१६२ आत्मारामजी महाराज विजयानंदसूरि महाराजने प्रश्न लख्यां हतां तेनो जवाब शुं छे ? उत्तरः-आत्मारामजी महाराजजी साहेबनो कागल नीचे मुजब आव्यो हतो. शहेर अंबाला संवत् १९५१ ना भादरवा वद ११ रखेउ. पूज्यपाद श्री श्री श्री १०८ श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरजी आत्मारामजी महाराजजी आदि साधु १० ना तरफथी धर्मलाभ वांचजो. भरुच बंदरे श्रावक, पुण्य प्रभावक, देव गुरु भक्तिकारक, शेठ अनोपचंद मलुकचंद विगरे. अत्रे सुखशाता छे धर्मध्यान करवामां उद्यम Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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