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________________ ( २४१) नां बार व्रत उच्चरी ले, अने चउसरणपयन्नो तथा आउरपच्चख्खाण, भत्तपच्चख्खाण, संथारापयन्नो आराधना प्रकिर्णक, आराधनापताका वि. गेरेनुं अध्ययन करे वा, सांभले. तथा अध्यवसाय बहुज सुंदर थशे. च. उसरण, आउरपञ्चख्खाण पयन्नादिक सांभलवाथी समाधीमरण थाय छे, तेनो मने अनुभव छे. आयुष्य श्रावी रह्यु होय तो मरणथी तो बचता नथी, पण रोग शांत पडे छे अने धर्म श्रवण करवामां चित्त परोवाइ शके छे ते में जोयुं छे; माटे ए पयन्नानो अभ्यास मरण अवसरे जरुर करवो. ए पयनामां भावार्थ एवो छ के जरूर धर्ममां जीव दृढ थाय अने आत्माने सारी भावना थाय. ते भावना आ प्रमाणे के, अहो ! में पूर्व आ भवे पाछला भवे पाप कर्या छे वा, जेथी पाप थाय एवां घर हाट, खेतर विगेरे मकानो, कोदाली, पावडा, वासण, शस्त्र, तरवार प्रमुख हरकोइ पापनां उपगरण-जे वस्तुथी पाप थाय एवा जे पदार्थ बनाव्या छे ते सर्वने वोशीगq . कोइ पण पुद्गलीक वस्तु साथे मारापणानो संबंध मान्यो छे, ते सर्वने वोशीराq छु. जे कोइ वस्तु उपर महारो कंइ पण राग रहेतो अने ते रागवाली वस्तुथी पाप याय तो ते पापनी किया मने आवे माटे सर्व जड पदार्थ उपरथी महारा ममत्वभावने त्याग करुं छु. कंइ पण वस्तु महारी छेज नहि. मारी बस्तु तो मारो आत्मध. में छे, अने जे जे पुद्गलीक पदार्थ छे, तेने अज्ञानपणे में महारा मान्या हता, तेथी अज्ञानपणे अनेक पाप उपार्जन कर्या. हवे पुन्य उदय पूर्ण जाग्यो, तेथी में कंइक वीतरागनो मार्ग जाण्यो. तेथी ए सर्वे वस्तु जड पदार्थ साथे महारो धर्म तपासतां-कोइ पण रीते संबंध राखवो जोग्य नथी. माटे महारा अज्ञानपणाना जे जे भावे महारापणुं मान्यु हतुं, ते त्याग करुं छु. ने ते पापने हुं निंदुं छु. में अज्ञानपणे अनादि काल थयो, ए शरीर धनने महारां मान्यां, तेथी में चार गतिमां भ्रमण क. यु अने अनेक दुःख भोगव्यां; माटे हवे महारा आत्मा शिवाय स्त्री, पुत्र पुत्रियो, जे जे महारां मान्यां छे, ते सर्व अज्ञानता अने अज्ञानभाव Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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