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________________ नता, तेवा तेवा शरीरादिक जूता जूदा भेड़ पड्या छे. तेथी शरीर इंद्रि अपेक्षित रूपी भेद गण्या छे. प्रश्नः-१४७ संवरना सत्तावन भेद अरूण कह्या, ने संवरनी प्रवृत्ति बाह्यथी देखाय छे ते तो शरीरथी छे. तो अरूपी केम ? उत्तरः बाह्यथी पुद्गल उपरथी मोह उतरे, त्यारे बराबर बाह्य वर्त्तः ना थाय छे. ने जेम जेम संवरनी बाह्यवर्त्तना थाय छे, तेम तेम पुद्गलदशामांथी प्रवृत्ति रोकाती जाय छे अने निज आत्म स्वरूपमा लीनता थाय छे, जेम जेम निज ज्ञानमा लीन थाय छे. एटले आवतां कर्म रो. काय छे, आत्म स्वरूपमा रहेवाथी द्रव्यकर्म, भावकर्म बन्ने रोकाय छे, ते जे भावकर्म रोकायां ते अरूपी छे. माटे संवर पण अरूपी छे तेथी संवरना भेद अरूपीमां गण्या छे. प्रश्नः-१४८ संवर निर्जरा मिथ्यात्वी करे के नहि ? उत्तरः-मार्गानुसारी मिथ्यात गुणस्थाने अंशे संवर, अंशे निर्जरा करे, एम हेमाचार्य महाराज जोगशास्त्रमा कहे छे. तेम विचारबिंदुमा उपा. ध्याय महाराज श्रीजशोविजयजी महाराज पण कहे छे. प्रश्नः-१४९ देरासरमा प्रभुजीनां अंगलुहणां मेलां वा फाटेलां वापरे तेनो दोष कारभारीने के बधा श्रावकोने ? उत्तरः-प्रभुने तो सर्वे उत्तम उत्तम वस्तु चडाववीज जोइए. आपणुं शरीर लुहवाने फाटेलुं वस्त्र कोइए लोहवा सारु आप्यु होय तो ते अ. नुकूल आवतुं नथी ने आपनार उपर देश आवे छे. वली आपणे घेर कोइ परदेशी परोणा आव्या होय, तेने फाटेलो वा, मेलो रुमाल श्रापता नथी तो प्रभुनां अंगलुहणां फाटेलां वा मेलां वापये तो आपणा क. रतां ने परोणा करतां प्रभु मनमा अधिक न आव्या अने ज्यारे प्रभुनी अधिकता मनमां न श्रावी, त्यारे आत्माने लाभ शी रीते थशे ? अने मु. खे तो प्रभु मोटा छ एम कहीए लीए पण चित्तमां मोटाइ नहि आवे, सारे लाभ तो नहि थाय, पण अवश्य मिथ्यात्व लागशे, वली बीजी Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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