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________________ ( २२० ) ते पण पोतानी आत्मदशामां रहीने भोगवे छे, पण रोग संबंधी कई पण चितवन करता नथी. जाणे छे जे रोगनी पीडा उत्पन्न थइ छे तेम हुं विकल्प करीश तो पाछां एवां कर्म बंधाशे, तो आत्माने कर्म थी कावयाने प्रवर्ततेने बदले कर्मना बंधनमां पडीश. एम उपयोग बनी ནཱ गयो छे. तेथीज पोतानी समभावनी धारा वर्त्या करे छे ने जे थाय छे ते जाणी ले छे, पण तेमां लीन थता नथी- कदापि पगमां घास प्रमुखना तृण कांकरा खुचे छे, कारण जे मुनिने जोडा पहेरवा नथी तेथी पगमां खूचे, वली पोते भाग्यशाली सुकोमल होय तो पण जरा तेमां खेद धरता नथी. मात्र कर्म स्वरूप जाण्युं छे तेथी ते संबंधीनो विचार ज चित्तमां आवतो नथी. कदापि थोडि विशुद्धिवालाने विचार श्रावे तो पाछो विचार करे छे के पगने खूचे छे, आत्मा अरुपीने कंइ खूचतुं न थी. माटे शा बदले हुं विकल्प करूं ? एम करी समभावमा रहे छे. शरीरे मेल प्रमुख थाय छे. कारण जे शरीरनी विभूषा तथा शुश्रुषा कंइ पण करवी नथी. तेथी शरीरे मेल थाय तो पण शरीरे ते हुं नहि. ए भाव बन्यो छे तेथी विकल्प थतो नथी. सत्कार परिषह ते मोटा मोटा राजा आवीने बहुमान करे छे. अहो महात्मा ! तमारा जेवा सत्पुरुष श्रा दुनियामां नथी. पांचे इंद्रियो वश करी छे जरा पण शरीरनी ममता नथी. केवल आत्मभाव तमे खरो जाण्यौ छे कोइ पण वखत त मे आत्मभावथी चूकता नथी. तमारा जेवा ज्ञानी आ जगतमां नथी. तमारा जेवा उपकारी कोइ नथी. मने जे धर्म बताव्यों छे तेनो जे उपकार कर्यो छे ते पण महारा माथा उपर छे, आप साहेबजीनी जेटली भक्ति करुं ते ओछी छे. एवी अनेक प्रकारनी स्तुति श्रावीने करे पण जराए अहंकार करता नथी. मनमां विचारे छे जे हजु हुं पुद्गलदशामांथी तो खस्यो नथी. आ पुरुषो तो आवी महोटाइ आपे छे तो म हारे पण जे जे पुद्गलदशामां उपयोग जाय छे ते पाछो वालवो जोइए ए ज्ञानदशानां बहु मान करे छे तेवी ज्ञान दशा हजु थइ नथी. माटे . Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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