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________________ ध्यानधारा वधारी केवलज्ञान पामी सिद्धिने वर्या. पांचशे मुनिने पालके पाणीमां पील्या, तो पण समभावमा रह्या. तेथी केवल ज्ञान पाभ्या. एवी रोते जे जे मारकूट करे छे तेनी दया भावे छे के, आ बिचारो अज्ञानप. णे कर्मबंध करे छे, पण पोताने दुःख थाय छे ते सामुं लक्ष आपतो नथी. एवी रीते मुनि महाराज समभावमा रहे छे. मारनार उपर द्वेषभाव जरा पण करता नथी. भगवानने संगमा देवे अतिशय आकरा घ. णा उपसर्ग कर्या. तो पण भगवान् चलायमान थया नहि. तेमज आ. स्मज्ञानीने अध्यात्म ज्ञान प्रगट थयुं छे. तेना प्रभावे गमे ते उपसर्ग आवे छे, ते समभावे सहन करे छे, पण तेने दुःख देवानुं स्वप्नमां पण विचारता नथी. आहार विना रहेवातुं नथी. तेथी शरीरने आधार आ. धार श्रापवा आहार पाणी लेवा जाय छे तेमां मनमां एम विचारता नथी जे, हुं गृहस्थपणे चक्रवर्ति वा, वासुदेव वा, मंडलिक राजा वा, शाहुकार हतो ते हुं याचना करवा केम जउं ? फक्त एमज विचारे छे जे आ शरीर आहारने आधारे चाले छे, तेथी एने आहार नहि आपुं ने शरीर मंद पडशे तो महारो समभाव कायम रहेवानो नथी. माटे ए शरीरने आहार आपको छे, ते सारु तीर्थकर महाराजे याचना करवानी म. र्यादा बतावी छे. ते करवी एमां हुं महोटो राजा छु. ए विचार कंइ क. रवानो नथी. कारण के राजाने रंकपणुं तो पुद्गलने छे श्रात्मा तो राजा' ए नथी ने रंक पण नथी. पोताना आनंदमय छे. पुद्गलने आहार पोषवा पुद्गल फरे छे. याचना करे छे एमां महारे कंइ विकल्प करवाना नथी. जे जे पूर्वकर्मने योगे क्रिया करवानी छे, ते थाय छे, एम याचना करवा जतां आहार मल्यो नहि ते अलाभ परिसह उत्पन्न थयो तो पण अलाभथी राग द्वेष करता नथी, ने विचारे छे जे आहार संबंधी अंतराय कर्म पूर्व बांधेलु छे ते उदय आव्युं छे तेथी आहार मलतो नथी, माटे एमां कंइ विकल्प करवानुं कारण नथी. एम विचारी पोताना स. मभावमा रहे छे. वली पूर्वकर्मना प्रभावथी शरीरे रोग उत्पन्न थाय तो Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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