SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१. ) हुं कृत्य करुं छु. आवी जड प्रवृत्ति पानादिकालनी पडी रही छे, ते महारा स्वरूपथी भिन्नपणुं छे, ने आ नजरे मोटी मोटी हवेलीओ देखें छु, तेमां नवी नवी रचनाओ कोरणी काम जोइने आनंदित थउं छु, ते महारे करवा योग्य छे ? ना, ना, ए सर्वे जडनी संगतनो प्रभाव छे. अमारा मकानमां केवो सारो रंग को छे ? केवी हांडीओ तकता टांगेला छे ? केवां रमकडां गोठवेलां छे ? केवी सुंदर तलाइओ बिछावी छे ? आवी वस्तु जोइ मने आनंद थाय छे ते केवु आश्चर्य जेवू छे ? जे वस्तु जड ते महारो पदार्थ नथी. वली जडनी संगतमां पण ए चीज स्थिर रहेवानी नथी विनाशी छे. ते पण विचारतो नथी. तुं एने मूकीने जइश, अगर ए तने मूकीने जशे. तेनुं पण ज्ञान थतुं नथी, अने आसक्तता थाय छे अने निज स्वरूपथी भूलो पडे छे, हवे में महारा आत्मानुं स्वरूप जाण्यु माटे हवे तो एथी हुँ न्या. रो छ. एम चोकस थाय छे तो पण हजु ज्ञानीना कहेवा प्रमाणे स्पर्श ज्ञान थयु नथी, तेथी हजु एना उपरथी विचार जतो नथी. माटे हवे महारे शुं करवू ? ते चेतन! बिचार कर. वीतराग देवनो उपदेश सांभल्यो, महारा आत्मानु रूप जाण्यु, जडनुं रूप जाण्युं, तो पण जडथी चित्त उतरतुं नथी. तेने सारु प्रभुजीए उपाय बताव्या छे, ते महारे करवा थोग्य छे. जेम आ सघला विचार छे, तेम ए पण आत्माना स्व. भाविक धर्ममों निश्चय नयथी स्वरूप प्रगट थयुं नथी त्यां सुधी अनु. भवथी विचार करवा योग्य लागे छे. तेमज रोज आत्मानो विचार करवो ने रोज शास्त्रनो अभ्यास करंवो, ते जेम कूवा उपर पथ्थर अ. थेवा लाकडां दाटेलां होय छे, तेनी साथे दोरडं राखी पाणी काढे छे तो ते रोजना घसाराथी पैथ्थर या लाकडामा मोटा खाडा पडी जाय छे, तेमज रोज अभ्यास करवाथी कर्मने घसारो लागशे तो आत्मा निर्मल . थशे. माटे अहर्निश सर्व बीजी उपाधि छोडी शास्त्रनो अभ्यस करु. पण ज्यां सुधी संसारनी उपाधि छे, त्यां सुधी एक चित्ते शास्त्राभ्यास Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy