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________________ ( १९४ ) नावर्णी कर्म बांधे छे. ए जीव उपर पण ज्ञानवाने तो करुणा लाववी, पण द्वेष लाववो नहि. कारण जे ए जीव शं करे ! कर्मराजा मार्ग आपे नहि ने आ भवमां तो समकित विना बुद्धिवान गणाया छे, पण एनी भवितव्यता एवीज छे के आवते भवे ज्ञान विशेष अवराइ जवान छे तेथी ए बिचारानी बुद्धि एवी थाय छे. वली ज्ञानवंतोए एवाने समजाववा जोइए. पण प्रायः केटलाएक कारभारीओ धनवान होय तेथी तेमने क. हेवा जइए तो उलटो वधारे द्वेष प्राप्त थाय एटले ज्ञानवानने पण मुंगा बेसवु पडे छे, हवे पैसाना आपनार माणस तो ज्ञानमां खरचवा आपे छे ते छतां ते पैसा न खरचवाथी तेमनो विश्वास उठी जाय छे. वली एवी खबरो पडवाथी जे पैसाना खरचनार होय छे ते पण ज्ञानना काममां खरचता नथी ने कहे छे जे ज्ञानना पैसा अमे आपीए ते खोरंजे पडे छे. आम विचार लइ ज्ञानना काममा पैसा खरचता बंध थइ जाय छे. आ. वां अनेक कारणो मलबाथी ज्ञानमां पैसा खरचवा बंध थइ गया छे पण एमां इलाज नथी. पण आत्मार्थीने तो सात क्षेत्र छे तेमां छए क्षेत्रने ओलखावनार ज्ञान छे माटे ज्ञान जेवू कोइ पण क्षेत्र नथी. मरण वखते पण जीवो लाखो रुपीश्रा मान प्रतिष्ठाने अर्थे शुभ काममां वापरे छे पण ज्ञानमां वापरता नथी. आत्मार्थीए तेम करवं नहि. आत्मार्थीए तो वधारे भाग एमां वापरवो. कारण जे बीजा क्षेत्रमा केटलाएक आत्मार्थे केटलाएक मान सारु पण खरचनार छे. तेथी ते कामो तो चाल्या करे छे तेमां अडचण नथी. ने आ ज्ञानक्षेत्रमा तो मोटी अडचण छे के ज्ञानना जूना भंडारो छे तेमां केटलाएक भंडारो एवा शेठीया तथा साधुओ पासे छे के कोइ वांचवा मागे तो एक पार्नु पण आपता नथी ने पुस्तक खवाइ जाय छे. हवे ए पुस्तकथी तो कंइ उपकार थनार नहि. वली केटलाएक भाग्यशालीना हाथमां छे ते पुस्तक आत्मार्थिना उपयोगमा आवे छे. पण सर्व वस्तुनी कालस्थिति छे माटे एने पण वधारे काल थवाथी नाश थवानो संभव छे. त्यारे जो नवां नवां लखातां जतां होय Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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