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________________ ( १६१ ) उत्तरः- श्रीभगवतजीनी छापेली टीकामां तथा बालाबोधमां पाने ७० मे छे. तेर प्रकारनां अंतर कह्यां छे. ते कारणे मुनी शंका करे तो कंखामोहिनी बांधे, वास्ते जिन वचनमां शंका करवी नहीं. कंखा शब्दे मिथ्यातमोहिनी कही छे. माटे जेम बने तेम परमात्माना वचन उपर दृढ रहे. प्रश्नः - ९२ भुवनपति प्रमुख नीचेना देवता देवलोकमां जाय के नहीं ? उत्तरः- भगवतीजीनी छापेली प्रतमां पाने २५६ मे चमरेंद्र गयानो अधिकार छे, पण तेमां एटलं विशेष छे के अरिहंतनुं, अरिहंतना चैत्यनुं एटले प्रतिमाजी, वा, साधुनुं शरणुं करी जाय तो जवाय ते शिवाय जवाय नहि. प्रश्नः - ९३ तामली तपासे साठ हजार वरस सुधी तपश्या करी फोगट गइ कहे छे ते केम ? उत्तरः- भगवतीजीमां पाने २३२ मे तामली तापसनो अधिकार छे त्यां अल्प फल कह्युं छे. पण कंइ पाम्या नहि एम तो नथी. वली इशान इंद्र थया ने अल्प फल ते मुक्तिनी अपेक्षाए कह्युं छे, कारण जे एवी तपश्या समकित सहित करो हती तो घणी निर्जरा थात; पण तेन थइ ते अपेक्षाए अल्प छे. ऋद्धि तो घणी पाम्या छे. वली थानक पण एवं पाम्या के समकित पाम्या. प्रश्नः _ ९४ तुंगीआ नगरीना श्रावकनो अधिकार क्यां छे ? उत्तरः र :- भगवतीजीनी प्रतमां पाने १९१ मे अधिकार श्रवण प्रमुखना फलनो अधिकार छे त्यां तुंगीयानगरीना श्रावकनुं स्वरूप छे. प्रश्र: - ९५ अभवी क्यां सुधी भणे ? उत्तरः - नंदीसूत्रनी छापेली प्रतमां पाने ३९९ मे साडानव पूर्व सुधी भएम कह्युं छे; पण श्रद्धा नहीं तेथी श्रात्मानुं काम थाय नहीं. प्रश्नः– ९६ श्रावकनां व्रत लीधा शिवाय बीजा परचूरण नियम करवानी मरजादा छे के नहि ? Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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