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________________ ( १६० ) आचारजो थइ गया. ते पुरुषनां वचन उपर लक्ष देवो जेथी आत्मानुं हित थशे. ने शक्ति प्रमाणे दान आपत्रं एज मार्ग छे. प्रश्नः-८९ श्रावा जैनमां बहु मत छे, ते लोकने शुं श्रात्मानी बीक नहीं होय ? उत्तर:—केटलाएक जीव बीकवाला होय पण पूर्वकर्मनी प्रेरणाथी श्र वलो अर्थज खरो लागे एटले बापडा शुं करे ? वली केटलाकनी बुद्धि मंद होय तेथी जे मतमां पड्या तेज प्रमाणे वार्त्ता करे. ए सर्व कर्मनी गति छे श्रापणे जैनधर्म नाम धरावी जैन मार्गमां शुं छे ? तेनुं पूरतुं ज्ञान मेलवता नथी, वली संसार असार जाणीए छीए तेम छतां छोडता नथी. ते आपणा कर्मनी गति छे तेमज सर्व जीव कर्मने श्राधीन छे माटे जीव उपर द्वेष न धरतां केवल श्रापणा आत्मानी परिणती सुधरे ते वो उद्यम करवो. जेम बने तेम संसारनी उपाधी ओछी करवी, पोतानी जीविका थोडा विकल्पे चालती होय ते छतां वधारे धन मेलवी खरचवांनी लालचे उपाधी करवी ते योग्य नथी. उपाधी जेम बने तेम छोडी रात्री दिवस ज्ञान अभ्यास करवो ने ते ज्ञानथी आत्मानुं स्वरूप जो बे घडी एकांत बेसी आत्मानो विचार करवो ए श्रेयकारी छे, आमानी परिणती बगडे एवा वाद विवादमां काल गुमाववो नहीं. एज शीखामण छे. प्रश्नः–९० आत्मप्रदेश हाली रह्यानो अधिकार आचारांगजीनी छापेली टीकामां पाने १०३ मे छे तेनुं शुं हेतु ? उत्तरः- आचारांगजीमां उष्ण उदकवत् उदवर्तना करी रह्या छे ए वात सत्य प्रत्यक्ष समजाय छे के शरीरना सर्वे भागोमा नसो हाली रही छे ते पाछी जीव रहित शरीर थाय छे त्यारे कंइ पण हालतुं नथी तेथी समजाय छे के श्रात्मप्रदेशना चलायमानपणाथीज हाले छे. लोकप्रकाशमां पण अधिकार छे, ए प्रमाणे प्रश्नः _ ९१ मुनी कंखामोहनी कर्म बाधे ए अधिकार क्यां छे ? Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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