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________________ ( १४४ ) क्षवाला एम पण कहें छे जे रोज उपवास- पच्चख्खाण करवू, पण वधारे सामटुं पच्चख्खाण करवं नाह. ए वात पण शास्त्र साथे मलती नथी. का रण जे ए ज तप चितवनमा जेटला भक्तनुं सामटुं हाल पच्चख्खाण थाय छे तेटला भक्तनुं चितवन छे. बीजं चिंतवन बीजी रीते छे. वली पञ्चख्खाणभाष्यमां पण छे. वली प्रवचनसारोध्धार विगेरे घणी जग्याए प. चख्खाणना अधिकार छे त्यां चोथभक्तादि पच्चख्खाण करवां कह्यां छे. ए आदि शब्दथी उपवासथी अधिक पच्चख्खाण सिध्ध थाय छे. माटे अधि. क पच्चख्खाण चोत्रीश भक्त सुधी करवाने हरकत नथी ने जो अडचण होय तो ए चिंतवन खोटु पडे. कारण जे जे बनी शके त्यां अटकवा कहुं छे ने त्यां सुधी चिंतवन करवू कडुं छे. पछी काउसग्ग पारी पच्च. ख्खाण करवानुं छे माटे बनी शके तेटलुं पच्चख्खाण करवू ते रीत सारी छे. प्रश्नः-७६ पजुसणमां कल्पसूत्र ज वाचवू, एवी परंपरा चाली छे तेनुं शुं कारण ? उत्तरः-कल्पसूत्रमा मुख्यत्वे साधुनो आचार छे ते वर्ष वर्ष दिवसे सां भले तो सर्व मुनि महाराजने उपयोग जागृत रहे. वली ज्यारथी सभामां वंचाय छे, तेथी श्रावक प्रमुखने प्रभुनां अद्भुत चरित्र जे आकरी तपश्चर्या, आकरो आचर, आकरा दुःखमां पूर्ण, पण पोताना उपशांतपणामां रह्या, आकरां दुःख देनारा उपर पण समताभाव, जरा पण द्वेष नहि, अतिशय ज्ञानशक्ति एवी दशा सांभल्याथी प्रभुना उपर आस्तिकता व. द्वि पामे. केम के जे पुरुषने देव मानीये तेनां आश्चर्यकारी चरित्र सांभल्याथी जरूर रागनी वृध्धि थाय ने भगवान् गणधर मुनि महाराजादि उपर राग वधे अने आज्ञा आराधे, ते ज सम्यक्त निर्मल थवा- कारण छे. आवा कारणशर उपकारी पुरुषोए हम्मेश वांचवानो वहिवट राखेलो समजाय छे. प्रश्नः-७७ अंजनशलाका कोण करे ? 'उत्तरः-अंजनशलाका प्रभुने आचार्य महाराज करे. एवी रीते षोडश Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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