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________________ (१४२ ) वली छ स्थान विचारे जे पहेलं स्थानक चेतन लक्षण ते विचारे जे श्रात्मानुं ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्य तप उपयोग ए छए लक्षणमय छे. बीजें आत्मा नित्य छे, अविनाशी छे, जन्म मरण पुद्गल संयोगे बने छे, ते म्हारो स्वभाव नथी. त्रीजं स्थानक विचारे जे आत्मा पोताना स्वभावनो कर्ता छे. ने कर्म संयोगे पुद्गलिक भावनो कर्त्ता बनी गयो छे. त्यांथी उपयोग पलटावे. चोथु भोक्तापणं विचारे जे निश्चेनये पोताना स्वभावनो भोगी छे, परभावन भोगीपणं परसंयोगे छे. पंचम स्थान ते परमपदनो विचार करे जे आत्मानुं पद ने सिध्धन परम पद तुल्य छे, कर्म संयोग भेद पड्यो छे. ते भेदथी रहित पोतानुं परम पद छे. ते प्रमाणे रहेवान भावे, छटुं स्थानक ते ए परम पद पामवानां कारण संयम अने ज्ञान ए बे छे, माटे बंधे वस्तुमां वर्त्तना करे. एवी रीते भावनाओ भा. ववानुं ज्ञान ते ज्ञान सांभल्याथी थाय ने एम भावतां स्वभाविक अनुभव ज्ञान प्रगट थया पछी जेम जेम स्वभावमां स्थिर थाय, तेम तेम आत्मानी निर्मलता थाय ने अनुभवज्ञाननी बुध्धि थाय ने तेम तेम निज तत्व प्रगट थाय. माटे हम्मेश सुंदर भावनानो उद्यम करवो. वली हेमाचार्यजी महाराजे ध्याननी घणी रीतो योगशास्त्रमा बतावी छे त्यांथी जोइने ए उद्यम विशेष रीते करवो. छेल्लो उद्यम ए छे माटे आत्मार्थी परुषो जे जे निवृत्तिनो वखत मले ते ते अवसरे ध्याननो अभ्यास करे ए श्रेय छे. प्रश्नः-७५ कोइ गच्छवाला कहे छे जे छए पर्व तथा कल्याणक दिवस शिवाय पोषध करवो नहि ते केम ? उत्तरः-आ वात न्यायथी तथा शास्त्रथी विरुद्ध जणाय छे. कारण के प्रभजीनो तो एज उपदेश छे जे समय मात्र प्रमाद करवो नहि. ते उपदेश आत्मार्थीना मनमां वस्यो छे. सदा भावना तो अप्रमादभावनी वर्ते छे, पण पूर्वकर्मना जोरथी ते प्रकारनी विशुद्धि थती नथी तेथी संजम लेता नथी तो पण पर्वने दिवसे पौषध अवश्य करे छे. ने पर्वना दिवस शिवायना दिवसे वखत मले तो ते काल प्रमादमां केम काढे १ ते दिव. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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