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________________ (४) स्त्रीगमन अने धन विगेरे परिग्रहना त्यागी होय, निरंतर शास्त्राध्ययन करता होय तेमने गुरु मानवा. तेमनी पासे धर्मोपदेश सांभलवो. . १७ प्रश्नः-पूर्वोक्त सर्व गुण न होय, पण शास्त्रोपदेश करी जाणता होय तो तेमनी पासे धर्म सांभलवामां शुं हरकत छे ? उत्तरः-उपदेश करनार मनुष्य उत्तम गुणवालो होय, तोज श्रोताओना मन उपर सारी असर करी शके छे अने पोताना उत्तम गुणोनी छाप सामा धणीना हृदय उपर पाडी शके छे; परंतु जो उपदेशक गुण विहीन होय तो “परोपदेशे पांडित्यम्” जेवं थाय छे, पोते मिथ्याडोल धारण करी भवभ्रमण वधारता जाय छे अने श्रोताओ पोतानो प्रात्मा सुधारी शकता नथी; कारण के, गुरु कहे छे पण तेमनाथी पाली शकातुं नथी, तो आपणे धर्म शी रीते पालीए ? एम मनमा श्राववाथी लाभ थाय नहीं. १८ प्रश्नः-यत् किंचित् सारभूत धर्मतत्व शुं छे ? ते कहो. उत्तरः-प्रथम तो धर्मनी योग्यता करवी. १९ प्रश्नः-धर्मनी योग्यता शी रीते थाय ? । उत्तरः-मार्गानुसारीना गुण उत्पन्न करवाथी धर्मनी योग्यता थाय. २० प्रश्नः-मार्गानुसारीना गुणनुं विवेचन करो. उत्तरः-प्रथम न्यायविभव-सर्व प्रकारना व्यापारमा न्याय पूर्वक व- तवं, अन्यायथी चालवू नहीं, नोकरी करतां धणीना सोपेला कार्यमाथी 'पैसा खाइ जवा नहीं, लांच खावी नहीं, ओछी समजवाला मनुष्यने छेतरवा प्रयत्न करवो नहीं, व्याज वटंतर करनारे सामा धणीने छेतरी व्याजना पैसा वधारे लेवा नहीं, माल भेलसेल करीने वेचवो नहीं, सरकारी नोकरी करनार मनुष्ये धणीने व्हाला थवा सारू लोको उपर कायदा विरुद्ध जुलम गुजारवो नहीं, मजूरी वा कारीगिरीनो धंधो करता रोज लइ काम बराबर करवू, खोटुं दिल करवू नहीं, नात अथवा मासनमां शेठाइ करतो होय तो, पोताथी विरुद्ध मतवालाने द्वेष बुद्धिथी . Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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