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________________ ( १२२ ) राजाना जीवे पाछले भवे आजीविकाने सारु संयम लीधुं हतुं तो पण ते काल करीने राजा थयो. त्यां पण आर्यसुहस्तिसूरी महाराजने जोइ ने जातिस्मरण ज्ञान थयुं ने समाकित पाम्या. ए आदि घणा गुण थया.ए अधिकार परिशिष्टपर्वणिमां पाने २७७ मे छापेली चोपडीमां छे. माटे एकांत ए पण नियम नथी. पण पोताने तो जेम बने तेम आ लोकनी वां. छा, परलोकनी वांछा घटे ए ज उद्यम करवो. पण केटलाएक जीव ला. लचे करता होय तेनो तपश्चर्यादिकनो उद्यम छोडाववो नहि. तेने उपदे. श दइ पा लोक परलोकनी वांछा छोडाववी. जेम के उपासरे पतासां श्री. फलनी प्रभावना थाय छे हवे ते लेवा आव्यो पण वहेंचवानी वार छ ने धर्म श्रवण कयु, ते सारं लाग्यु ने रुचि थइ. तो पछी आत्मानुं हित पण थाय. वास्ते धर्मकरणी करतां कोइने उवेखवा नहि, ने बनी शके तो जे परभावनी वांछना छे ते छोडाववी ए सारु. हरिभद्रसूरी महाराज अष्टकजीमा ८ मा अष्टकमां म्हारा पासे प्रत छे तेने पाने ४१ मे ला. व्या छ जे पा लोक परलोकनी वांछनाए तप करे छे, पण अरिहंतना भ. क्तिफलथी मने लाभ मलशे एवी भावना छे. तेमां अरिहंत उपर राग छे, ते परंपराए जोडनार छे. एवी रीते लाव्या छे. वली पंचाशकजीमां पण ए ज रीते पाने १९४ में तपनो अधिकार छे; तेमां पण ए वात परंपराए ला. भकारी दर्शावी छे. वली नंदीजीनी टीकामां छापेली प्रतमां पाने २४१ मे सउथी थोडा गृहस्थलिंगे सिद्ध. तथा अन्यलिंगे असंख्यातगुणा सिद्ध थाय. तेथी साधुलिंगे जैनना ते असंख्यातगुणा सिद्ध थाय. वली सिद्धपंचाशिकामां एक समये गृहस्थलिंगे चार सिद्धि वरवाना कह्या छे. ने अन्य तापस लिंग दश सिद्धि वरवाना कह्या छे. हवे विचारो जे गृहस्थ. लिंगमां श्रावक सम्यक्दृष्टि सर्व आव्या ते छतां चार सिद्ध वरे, ने ता. पसादिकने कंइ समकित मूलथी नथी ते छतां दश वरे तेनुं कारण ए. टटु ज छे जे सम्यक्दृष्टि श्रावके आत्मानुं स्वरूप तथा परस्वरूप जाण्यु छे तथा संसार अस्थिर जाण्यो छे पण पूर्वकर्मना योगे संसारमाथी नीक Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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