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________________ ( ११४ ) तो पण एक बीजा उपर द्वेष नथी. बन्ने मुक्तिना कामी छे, तेथी तेना पछीना पण आचार्यो एम कहे छे के जिनभद्र क्षमाश्रमणजी आम कहे छे ने सिद्धसेनदिवाकरजी श्राम कहे छे. एम मध्यस्थ रहे छे, पण कोइने वधता ओछा कहेता नथी. तेम आपणे पण मध्यस्थ रहेवू. जेम के खरतर गच्छवाला सामायिक लेतां करेमिभंते पहेली कहे छे, ने पछी इरियावही पडिक्कमे छे. ए रीते अावश्यकनी टीकामां हरिभद्रसूरि महाराज कही गया छे. वली तपगच्छमां पहेली इरियावही पडिक्कमी पछी करेमिभंते क. हीए छीए. ए विषे श्री महानिशीत्थ सूत्रमा कयुं छे के इरियावही पडि. कम्या विना कंइ काम करवू नहि. ए आधारे तपगच्छवाला करे छे तो बे शास्त्र बन्ने गच्छवाला कबूल करे छे तो बन्ने गच्छवालाने मध्यस्थ र. हेवू जोइए. जेम पूर्वाचार्य बे आचार्यना बे मत दर्शावे छे, पण कोइने उवेखता नथी तेम आपणे पण वर्तवू जे आ गच्छवाला आ ग्रंथने श्राधारे आ क्रिया करे छे, आ गच्छवाला आ ग्रंथने आधारे करे छे. एम करी मध्यस्थ रहेवू; पण एक शास्त्रने खरुं करवू, एकने खोटुं करवू, ने राग द्वेषमां पडq ते आत्माने दुःखदायक छ. ने जे प्रवृत्ति पूर्वाचार्यनी नथी ने पोतानी मतिकल्पनाथी ज छे, वली शास्त्रथी पण विरुद्ध छे तेमां पण ते शांतपणे समजे तो समजाववो, पण राग द्वेष करवो नहि. आप. णा आत्माने गुण थाय तेम प्रवृत्ति करवी. कारण जे ठाणांगजीमां चौभंगी छे के, परगच्छी छे ने योग्य जीव छे तेने पोताना गच्छना हठथी ज्ञान नथी आपता ते प्रभुनी आज्ञा लोपे छे. एथी समजवंजे गुणवंत होय ने परगच्छी होय तो पण तेने उवेखवो नहि. कारण जे गुणवंत होय ते समपरिणतीवालो होय, तेनी साथे परिचय करतां गच्छनी तकरार आवे नहि. एक बीजानी भूल होय तो सुधरे. माटे गच्छनो हठ करी तकरा. रमां पडवू नाह. शास्त्र उपर दृष्टि दइ विचारवं. बे शास्त्रमा बे वात होय ते बे कंइ ग्रहण थती नथी. वली बेमां एके वात खोटी तो होय ज नहि. पण बन्नेना जूदा जुदा हेतु होय, ते गीतार्थ जाणे. हालमां एवा गीतार्य Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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