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________________ ( ९७ ) संबंध छे, ते आश्रव श्राववानां कारण छे. समये समये पुद्गलिक पदार्थ उपर राग करे छे तेथी कर्म बांध्या करे छे. कर्म बांधवानां बीजभूत राग द्वेषनी प्रकृति छे ते प्रकृति थवाना कारणभूत शरीर, पुत्र, स्त्री, धन, म. कान, अहंकार ममकार ए पदार्थ छे. माटे हे चेतन ! ए त्हारे करवा यो. ग्य नथी. फरी फरीने आ मनुष्य जन्म मलवानो नथी. भाग्योदये आ मनुष्य जन्म मल्यो छे, माटे जेम बने तेम आश्रवनी प्रवृत्ति बंध कर. जेथी कर्मबंध थाय नहि. ए मिथ्यात्वादिकनो विचार प्रश्न ५१ ना जवाबमा छे त्यांथी जोइने भावq. संवरभावना भावे जे समये समये कर्म आवे छे ते समभावे रोकाय माटे हे चेतन ! तुं समभावमां रहे. समभावना प्राववानां कारण सत्तावन छे. ते सत्तावन सेव्याथी संवरभाव थशे. पाच समिति, त्रण गुप्ति, बावीश परीसह, दशविध यतिधर्म, बार भावना, पांच चारित्र ए सत्तावन सेव्या. थी श्रावतां कर्म रोकाय छे. माटे हे चेतन ! तुं संवरनां कारण अंगीकार कर के, जेथी आवतां कर्म रोकाय, ज्यां सुधी संवरभावना नहि करे त्यां सुधी आत्मान कार्य थवानुं नथी, ने भव फेरो पण मटवानो नथी. माटे हरेक प्रकारे संवर भाव कर. एवी रीते संवरभावना भावे. निर्जराभावना ते-पूर्वना कर्मोनी निर्जरा करवा भावे, अकामनिर्जरा तो समये समये जे जे कर्म भोगवाय छे, ते ते समये बने छे, पण तेमां आत्मा निरावरण थतो नथी. कारण जे निरावरण अात्मा करवानी इच्छा नथी. स्वपर उपयोग नथी. परभावमा पासक्तता छे तेथी पाछां नवां कर्म बंधाय छे. माटे हे चेतन ! तुं कर्मक्षय करवा उजमाल थइ, जे जे कर्म उदय थाय ते समभावे भोगवे तो, सकाम निर्जरा थाय. वली उदय नथी थयां तेने क्षय करवाने सार बार प्रकारे इच्छारोध रूप समभावे तप कर के, तेथी कर्मक्षय थाय. अनशन ते नवकारशी, पोरसी, साइपोरसी, पुरीमट्ट, अवठ्ठ, एकासगुं, बेसणुं, नीवी, आयंबिल, उपवास, छठ, अठ- मादि तपश्चर्या करूं के तेथी म्हारां कर्म निर्जरे ने आत्मा निर्मल थाय. Scanned by CamScanner
SR No.034080
Book TitlePrashnottar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand Malukchand Sheth
PublisherJain Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1906
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size135 MB
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