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________________ ( ४६ ) धर्म ध्यान आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थान का चिन्तवन करने से ध्येय के भेद सहित धर्म ध्यान के चार प्रकार बताये गये हैं जिसका संक्षेप वर्णन इस प्रकार है । (१) श्राज्ञा ध्यान उसको कहते हैं कि सर्वज्ञ प्रभु की अबाधित प्रज्ञा समक्ष रखकर तत्त्व बुद्धि से अर्थ चिन्तवन करना, उसका मनन करना और वर्तन करना । जिनेश्वर भगवान् के वचन सूक्ष्म हैं और हेतु युक्ति से खण्डित नहीं हो सकते, जिनेश्वर प्रभु असत्य उच्चार नहीं करते, इसलिए उनके वचन ग्रहण करने योग्य होते हैं । और जो ग्रहण करते हैं वह आज्ञा रूप ध्यान की कोटि में गिने जाते हैं । 1 (२) पाय विचय ध्यान उसको कहते हैं कि जिस ध्यान के प्रताप से राग, द्व ेष, कषाय आदि से उत्पन्न होने वाले दुखों का चिन्तवन होता हो, और जिसको इस प्रकार का चिन्तवन होता है वह पुरुष इस लोक व परलोक सम्बन्धी पाप का त्याग करने में तत्पर होकर सर्व प्रकार के पाप कर्म से निवृत्ति पाता है । और सन्मार्ग में चलता है व कर्म बन्धन को रोकता रहता है । (३) विपाक विचय ध्यान उसको कहते हैं कि इस ध्यान से क्षरण क्षरण में उत्पन्न होने वाले कर्म फल के उदय का अनेक रूप से विचार किया जाय और कर्म समूह से अलग होने की भावना भायी जाय और यही सोचता रहे कि अरिहन्त भगवान् को जो सम्पदा सम्प्राप्त है, और नर्क के जीवों को जो विपदा प्राप्त है । उसमें पुण्य और पाप का ही साम्राज्य है । ( ४ ) संस्थान विचय ध्यान उसका नाम है कि जिसमें उत्पत्ति, स्थिति, और नाश स्वरूप वाले अनादि अनन्त लोक की Scanned by CamScanner
SR No.034079
Book TitleNamaskar Mantrodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaychandravijay
PublisherSaujanya Seva Sangh
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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