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________________ ( २८ ) इस तरह अन्योन्य कारण है। समता गुरण में झीलता हुवा ध्यान का अभ्यास करे। स्थान शरीर वस्त्र और उपकरण शुद्धि का विशेष ध्यान रखना चाहिये क्योंकि पवित्रता से चित प्रसन्न रहता है और साध्यता सिद्ध होती है। जो लोग हृदय को पवित्र किये बिना ध्यान करते हैं उन्हें सिद्धि नहीं होती। एक राजा महाराजा को अपने गृह निवास में आमंत्रित करते हैं तो निवास स्थान को कैसा सुन्दर स्वच्छ बना कर सजाया जाता है। पवित्रता और आस-पास की जमीन स्वच्छता पर पूरा लक्ष दिया जाता है। तो त्रिलोकीनाथ को हृदय में प्रवेश करते समय मन-हृदय शरीर कितना निर्मल बनाना चाहिये जिसकी कल्पना पाठक स्वयं कर सकते हैं। जाप करने वाला मौनवृत्ति से जाप करे तो विशेष फलदायी होता है । जो मौनवृत्ति जाप करने से थकित हो जाते हैं उनकोजाप बांधकर ध्यान करना चाहिये । ध्यान से थक जाने पर जाप्य और दोनों से थक जाने पर स्रोत पढे और हस्व दीर्घ का भान रखता हुवा रहस्य को समझता जाय और जिस राग-रामिणो छन्दादि में स्रोत हो उसी राग में मधुरी आवाज से पाठ करे तो फलदाई होता है। प्रतिष्ठा कल्प पद्धति में श्री पालिप्ताचार्यजी महाराज ने लिखा है कि जाप तीन तरह के होते हैं। (१) मानस, (२) उपांशु, (३) भाष्य, इन तीन प्रकार के जाप्य में मानस जाप्य उसको कहते हैं कि जो मन ही में मग्नता पूर्वक स्थिर चित्त से एकाग्रता सहित लय लगाता हुवा ध्यान करता रहे । इस तरह के जाप्य को उत्तम कोटि में लिया है, और मानस जाप शान्ति तुष्टि पुष्टि के करने वाला है। दूसरा उपाँशु जाप उसे कहते हैं कि, दूसरा कोई पास में बैठा हो वह तो सुने नहीं लेकिन अन्तर जल्प रुप अर्थात निज के Scanned by CamScanner
SR No.034079
Book TitleNamaskar Mantrodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaychandravijay
PublisherSaujanya Seva Sangh
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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