SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ नमो उवझायाणं मुखे, - ॐ नमो लोए सव्व साहणं मस्तके, विगेषु अम्ह रक्ष रक्ष हिलि हिलि मातङ्गिनीं स्वाहा ।। रक्ष रक्ष ॐ नमो अरिहन्ताणं आदि, ॐ नमो मोहिणी मोहिणी मोहय मोहय स्वाहा ॥३६॥ इस मन्त्र को साध्य करे और रास्ते चलते समय विकट पन्थ में या निजगृह में अथवा अन्यत्र चोरादि उपद्रव उत्पन्न हुवा हो . तत् समय जाप्य करने से उपद्रव शान्त हो जाता है, और भय मुक्त हो जाता है। इसमें शक्ति तो इतनी है कि चोरादि का स्थम्भन हो जाता है , किन्तु ध्याता पुरुष का प्राकर्म हो तब इतनी सिद्धि तक पहुंच सकते हैं । सम्भव है श्री जम्बू स्वामी ने इसी मन्त्र का उपयोग किया हो । ज्ञानी गम्य । ॥ मोहन मन्त्र ।। ॐ नमो अरिहन्ताणं, अरे अरिणि मोहिरिण, अमुकं मोहय मोहय स्वाहा ॥३७॥ . इस मन्त्र को साध्य करते समय षटि क्रिया करके अमुक के नाम सहित जाप करे, और प्रत्येक मन्त्र सफेद पुष्प हाथ में लेकर . बोलता जाय और सामने के मालम्बन पर चढाता जाय तो मोहिनि मंत्र सिद्ध होता है । षटि क्रिया गुरु गम से जानना चाहिये । .5 ॥ दुष्ट स्थम्भन मन्त्र ।। २ ॐ ह्रीं अ. सि. आ. उ. सा. सर्व दुष्टान् स्थम्भय, स्थम्भय, मोहय मोहय, अधंय अंधय मुकय मुकय कुरु कुरु ह्रीं दुष्टान् ठः ठः ठः ॥३८॥ Scanned by CamScanner
SR No.034079
Book TitleNamaskar Mantrodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaychandravijay
PublisherSaujanya Seva Sangh
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy