SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. श्रीवत्स नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : 1 श्रीदाता श्रीवत्स की महिमा अपरंपार । ऋद्धि वृद्धि सुमति दीये, अक्षय गुण भंडार ॥ मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्हं नमः । सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धि - श्रेयोऽर्थं श्रीवत्समंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग - मालकोश) आनंद आनंद मंगल हो - 2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल; आनंद आनंद मंगल हो ... श्रीवत्स को भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल; आनंद आनंद मंगल हो... : * श्रीवत्स ( तर्ज चौक पूराओ, माटी रंगाओ...) तोरण बंधाओ, दीप सजाओ, अष्टमंगल मोरे अंगना पधारे.... जयजयकार गुंजाओ रे, मोतीयन थाल सजाओ रे, अष्टमंगल को बधाने की बेला.... आंगन आज है खुशियों का मेला.. तोरण..... श्रीकर श्रीवत्स प्यारा, गुणीजन हृदय का सिंगारा, दर्शन करके मन हर्षाये..... भाव अनोखे हृदय में जगायें... तोरण..... जो इसे भाव से बधायें, सुख संपत्ति घर आये. दूर हो पापों की श्याम घटायें.... प्रसरे पुण्य की पुनित प्रभायें.. तोरण.... 100000/ ATME
SR No.034074
Book TitleAshtmangal Geet Gunjan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyaratnavijay
PublisherShilpvidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy