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________________ अष्टमंगल वधामणा १. स्वस्तिक नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : अष्टमंगल के दर्श से, श्रीसंघका उत्थान | विघ्न विलय सुख संपदा, मिले मुक्ति वरदान ।। धर्म चार स्वस्तिक वदे, दान - शील-तप-भाव | चार गति के नाश से, प्रगटे आत्म स्वभाव ।। मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्हं नमः । सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति - ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धि - श्रेयोऽर्थं स्वस्तिकमंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग - मालकोश) आनंद आनंद मंगल हो - 2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल; आनंद आनंद मंगल हो ... स्वस्तिक को भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल; आनंद आनंद मंगल हो... * स्वस्तिक (तर्ज : शाम ढले यमुना किनारे / वीर झुले त्रिशला झुलावे...) मंगलमय स्वस्तिक बधायें, गायें गुण-गान आनंद मनायें, उत्सव का रंग है, दिल में उमँग है, भावों के परिमल से महकी हवायें... मंगलमय. स्वस्तिक है सुखकार, पंखुडी शोभे चार, चार गति को निवार, दे मुक्ति उपहार, जग में जयकार हो, यश का विस्तार हो, मंगल आनंद की सरगम बजायें... मंगलमय. सम्यग् दर्शन ज्ञान, तप चारित्र महान, आतम गुण का निधान, व्रत वरिति का विमान, पथ में प्रकाश करें, मोह का विनाश करें, भव के भ्रमण को दूर मिटायें... मंगलमय. 4
SR No.034074
Book TitleAshtmangal Geet Gunjan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyaratnavijay
PublisherShilpvidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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