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________________ 6.4 कलश का प्रतीकार्थ : (1) कलश पूर्णता का प्रतीक है। जिनालय निर्माण में अंत में पूर्णाहुती स्वरुप में शिखर पर कलश(ईंडु) चढ़ाया जाता है। हस्तप्रतो में ग्रंथ पूर्ण हो जाने के बाद लेखपाल अंत में कलश का चित्र दोरतें थे। श्रीपाल राजा का रास, स्नात्रपूजा इत्यादि अनेक रचनाओं में पूर्णाहुति के बाद, अंत में 'कलश' स्वरुप में पद्यरचना होती है, जो आनंद की अभिव्यक्ति है। (2) आनंदघनजी, चिदानंदजी इत्यादि अनेक योगीपुरुषों ने मानवशरीर को घट (कलश) की उपमा दी है। (3) जल के गुणधर्म शीतलता, पवित्रता और शांति प्रदान करना है । जलपूर्ण कलश के ध्यान से आत्मा को इन गुणों की प्राप्ति सहज होती है। मंत्र का समावेश होता है। कर्म में प्रथम शांतिक कर्म मे कुंभस्थापनादि 7. मत्स्य हे प्रभु! आपने कामदेव पर संपूर्ण विजय प्राप्त किया है, इसलिए उसने अपनी धजा आपके चरणों में समर्पित कर दी। इस धजा में मत्स्य का चिह्न था, इसलिए प्रभु ! आपकी समक्ष मत्स्यमंगल का आलेखन करता हूं। 7.1 अष्टमंगल का सातवाँ मंगल है मत्स्य- मीन - मछली । जहाँ भी मंगल का आलेखन हुआ है वहाँ पर दो मछली का साथ में ही हुआ है। इसलिए इस मंगल को मीनयुगल अथवा मीनमिथुन भी कहा जाता है। माद्यन्ति लोकोऽनेनेति मत्स्यः । जिससे लोक प्रसन्न हो वो मत्स्य । मीनयुगल सुख और आनंद का प्रतीक होता है। दिगंबर 21
SR No.034073
Book TitleAshtmangal Aishwarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysundarsuri, Saumyaratnavijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2016
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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