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________________ भाषाभास्कर आश्चर्यबोधक यथा वाह वाह धन्य धन्य जय जय । लज्जा वा निस। दर बोधक यथा छी छी धिक फिश दर इत्यादि जानो ॥ एग्यारहवां अध्याय । अथ वाक्यविन्यास । ३५२ वाक्यविन्यास व्याकरण के उस भाग को कहते हैं जिस में। शब्दों के द्वारा वाक्य बनाने की रीति बताई जाती है ॥ __ ३५३ पहिले की लिखी हुई रीतियों से जिन शब्दों को सिद्ध कर आये हैं उन्हें वाक्य में किस क्रम से रखना चाहिये इसका कोई नियम बतलाया नहीं गया इसलिये उसे अब लिखते हैं जिसे जानकर जहां जो पद रखने के योग्य है उसे वहां रखें ॥ ३५४ पदों के उस समह को वाक्य कहते हैं जिसके अंत में क्रिया रहकर उसके अर्थ को पूर्ण करती है। वाक्य में प्रत्येक कारक न चाहिये परंतु की और क्रिया के बिना वाक्य नहीं बनता ॥ - ३५५ जिसके विषय में कुछ कहा जाता है उसे उद्देश्य कहते हैं और जो कहा जाता है वही विधेय कहाता है। जैसे घास उगती है घोड़ा दौड़ता है। __३५६ उद्देश्य और विधेय दोनों को विशेषण के द्वारा हम बढ़ा सकते हैं। जैसे हरी घास शीघ्र उगती है काला घोड़ा अच्छा दौड़ता है ।। ___३५० समझना चाहिये कि जब वाक्य में केवल कता और क्रिया दोही होते हैं तब कताउटेश्य और क्रिया विधेय रहती है। जैसे आंधी आती है यहां आंधी उद्देश्य है और आना क्रिया उसके ऊपर विधेय है ऐसे ही और भी जाना ॥ __ ३५८ यदि कती को कहकर उसका विशेषण क्रिया के पूर्व रहे तो फती को उद्देश्य करके उसके विशेषण सहित क्रिया को उस पर विधेय जानो। जेसे नगरों में कूए का पानी खारा होता है। इस वाक्य में कती जो पानी है उस पर उसको विशेषण खाग के साथ होना क्रिया विधेय है। ___३५६ यदि एक क्रिया के दो कती वा दो कर्म होवें और परस्पर एक दूसरे के विशेष्य विशेषण न हो सके तो पहिली संज्ञा को उद्देश्य और दूसरी संज्ञा सहित क्रिया को विधेय जाना । जेसे वह लड़का राजा हो गया यह मनुष्य पशु हे वह पुरुष स्त्री बन गया है । Scanned by CamScanner
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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