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________________ 996 भाषाभास्कर 30 घरचन्दमा महाजाति राजे चढी चण्डिकासिंहसंग्राम गावे। (६३) चार सगण का तोटक छन्द होता हे ॥ ४० शिवशंकर शम् विशल धरं शिलिकंठ गिरीश फणीन्द्र करं । (६४) चार रगण का लक्ष्मीधर छन्द होता हे ॥ 60 श्रीधरे माधवे रामचंद्रं भजा द्रोह को मोह को क्रोध को जतजो॥ (६५) सारंग छन्द उसे कहते हैं जिसमें चार भगण हो रहते है। 80 गोपाल गोविन्द श्रीकृष्ण कंसारी केशो कृप सिंधुमापाप महाही (६६) जिस में चार जगण रहते हैं उसे मौक्तिकदाम छन्द कहते हैं॥ 50 गुपालगोविन्द हरे नदनन्दन दयाल कृपाल सदा सुखकन्दन। (६०) लेटक छन्द का लक्षण यह है जिस में चार भगण होवें ॥ उ० केशो कृष्ण कृपाल कर । मूरति मैन मुकुन्द मनोहर । (६८) तरलनयनी छन्द में चार नगण होते हैं । 30 कलुष हरन हरि अघ हर कमल नयन कर गिरिधर n. (६६) सुन्दरी उसे कहते हैं जिस में एक नगण दो भगण एक रगण हो ॥ 80 मदन मोहन माधव कृष्ण ज गरुड़ वाहन वामन विष्णु ज . (७०) एक सगण एक जगण और दासगण का प्रमिताक्षरा छन्द होताहै। 30 वृजराज कृष्या कर पक्षधरं रघुनाथ रामपद देववरं । यद्यपि यहां सब वृत्त नहीं लिखे गये हैं तो भी इतने लिखे हैं कि प्रायः प्रयोजन न अड़ेगा और व्याकरण के ग्रन्थ में सब छन्दों का लिखना उचित भी नहीं है इस कारण साधारण से कुछ लिख कर बहुत से कोई दिये हे ॥ ___ गत अर्थात जिन में गग रहता है जैसे मरमागर के भजन गादि होते हैं उनकी रचना भी इसी प्रकार हुआ करती है । ॥ इति छन्दोनिरूपण ॥ Scanned by CamScanner
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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