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________________ भाषाभास्कर १९३ (A) एक नगण और एक जगगा का व.स छन्द होता है। 30 भजु मन गहन परम सुसाहन ॥ (३०) एक नगण और एक सगण और एक लघु का करहन छन्द होता है ॥ ठ० हरि चरण सेऊ सुख परम लेऊ ॥ (३१) दा अगण और एक गुरु का शीर्षरूप छन्द होता है। उ० / जे कृष्ण गोपाला राधामाधे। श्री पाला ॥ (३२) एक मगण और एक सगण और एक गुरु का मदलेखा छन्द होता है ॥ 30 गोविन्द कहि माधे। केशे जी हरि साधो ॥ (३३) दो नगण और एक गुरु का मधुमती छन्द होता है ॥ 30 मजु हरि चरना असरन सरना ॥ (३४) एक भगा और एक प्रगण और दो गुरु का विद्युन्माली छन्द होता है ॥ 30 जे जे जे श्री राधा कृष्णा केशो कंसाराती विष्णा ॥ (३५) एक जगण और एक रगण और एक लघु का प्रमाणका छन्द होता है ॥ उ० भजी भजे! गोपाल को कृपाल नन्दलाल को ॥ (३६) एक रगण और नगण और एक गुरु और लघु का मल्लिका __ छन्द होता है ॥ उ० राम कृष्णा राम कृष्णा वासुदेव विष्ण विष्णा . (३०) दो नगण और दे। गुरु का तुंगा छन्द होता है। 30 गगन जलद छाये मदन जग सुहाये ॥ (३८) एक नगण और सगण और एक लघु और एक गुरु का कमल __ छन्द होता हे॥ ७० हरि हरि कहो कहो सब सुख लहो लहो ॥ (३६) एक जगण और एक सगण और एक लघु और एक गुरु का कुमारलसिता छन्द होता है ॥ ७० भने। जु सुखकन्द, को हरो जु दुखदन्द को. .. 15 Scanned by CamScanner
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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