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________________ Ro मायामास्कर अब वृत्तों में के भेद होते हैं उसके जानने की रीति । १ समवृत्त । (४) जिसके चारों चरण तुल्य होते हैं उसे समवृत्त कहते है। २ अधंसमवृत्त । (1) निसके दो चरण सम हों और शेष दो पाद विषम रहें तो उसे अर्धसमवृत कहते हैं ॥ ३ विषमवृत्त । (१६) विषमवृत का लक्षण यह है कि जिस वृत के चारों बाद आपस में तुल्य न होवे । आगे क्रम से इन सब के उदाहरण लिखते हैं ॥ १ ममवृत्त का उदाहरण । बाला वृष्ण मुकुन्द मुरारे त्रिभुवन विदित काम सब सारे । जरासंध कंसहि प्रभु माग त्रिभुवन विदित काम सब सारा। २ अर्थसमवृत्त का उदाहरण । राम राम कहि राम कह वालि कीन्ह तन त्याग । सुमन माल जिमि कंठते गिरत न नान्यो नाग । ३ विषमवृत्त का उदाहरण । राम राम भजु राम कंचन अस तनु धरि जगत । जप तप सम दम ब्रत्त नियम निकाम । करि करि हरि पद पद धार उतरि जवेरा हो ॥ कुछ वृत्त अब दृष्टान्त के निमित्त आगे लक्षण और उदाहरण के साथ लिखते हैं। विद्यार्थियों को उचित है कि इन्हें सीखें तो प्रायः छन्दों की रचना में नियमानुसार अशुद्धता न रहेगी और निपुणता प्राप्त होगा। इस प्रकरण में इतनी ब.ते का जानना .त्यन्त आवश्यक है ॥ १ छन्दे लक्षाणु ४ उदृष्ट २ उदाहरण म्लारनाम [स्तार Scanned by CamScanner
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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