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________________ [१] प्रज्ञा उन सभी को जानता है। वह भी वास्तव में मूल आत्मा नहीं है, अपनी प्रज्ञा है। वह मूल आत्मा की शक्ति कहलाती है इसलिए वह सबकुछ जानती है। 'वह (आत्मा) जानता है' वह सही है लेकिन यह (प्रज्ञा से जाना हुआ) भी गलत नहीं कहा जाएगा। यहाँ पर इन्द्रियाँ नहीं हैं। उसी प्रकार इसमें मूल आत्मा तो बिल्कुल ही नहीं है। ऐसा तो इस रास्ते पर लाने के लिए कहते हैं। अतः इसे रिलेटिव-रियल कहा जाएगा! विचार और प्रज्ञा बिल्कुल अलग-अलग प्रश्नकर्ता : अब अगर कोई विचार आए तो वह प्रज्ञाशक्ति को आया या चंदूभाई को आया, ऐसा कैसे डिस्टिंग्विश हो पाएगा? दादाश्री : नहीं, कोई भी विचार प्रज्ञाशक्ति का नहीं होता। विचार तो डिस्चार्ज होकर जाने के लिए आते हैं सारे । विचार डिस्चार्ज हैं। वे प्रतिष्ठित आत्मा के हैं, वे चंदूभाई के हैं। प्रज्ञाशक्ति तो देखती है कि क्या विचार आए! अच्छे आए या खराब आए, उन्हें देखती है। उसमें गहरे नहीं उतरती अतः विचार ज्ञेय बन जाते हैं। वे प्रज्ञाशक्ति के लिए ज्ञेयस्वरूप हैं। ज्ञेय अर्थात् जानना और दृश्य अर्थात् देखना। विचार ज्ञेय और दृश्य हैं, अब हम ज्ञाता और दृष्टा हैं। प्रश्नकर्ता : आपने कहा है कि अंदर मन भी रडार की तरह दिखाता है तो अभी मन बता रहा है या प्रज्ञा दिखा रही है, इस भेद को किस तरह समझें? दादाश्री : अभी की बात जाने दो न! अपना ज्ञान प्राप्त होने के बाद प्रज्ञा ही है। जो सभी विचारों से मुक्त करके मोक्ष की तरफ ले जाती है, उसे कहते हैं प्रज्ञा ! और पहले अज्ञा नाम की जो शक्ति थी जो मन के थू बरतती (कार्य करती) थी, बुद्धि के श्रू बरतती थी, वह संसार में गहराई तक ले जाती है। अतः अभी जो प्रज्ञा नाम की शक्ति है तो वह इस ओर ले जाती है। मन के जो विचार हैं न, वह प्रज्ञा का काम नहीं है। विचार आते हैं या नहीं आते? प्रश्नकर्ता : आते हैं। उन्हें तो ज्ञाता-दृष्टा भाव से देखते रहते हैं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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