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________________ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : वह सब प्रज्ञा करवाती है। प्रश्नकर्ता : ये प्रतिक्रमण कौन करवाता है? दादाश्री : वह सब प्रज्ञा ही करवाती है। भूलें दिखने लगें तो भगवान बन जाए। भूलें किसकी वजह से दिखाई देने लगती है? वह तो, अपनी प्रज्ञाशक्ति की वजह से। आत्मा में जो प्रज्ञाशक्ति रही हुई है, उसकी वजह से सभी भूलें दिखने लगती हैं और वही हमें भूलें दिखाती है इसीलिए तुरंत हम उनका निबेड़ा ले आते हैं। हम कहते हैं कि 'भाई प्रतिक्रमण करो'। वह प्रज्ञाशक्ति दाग़ दिखाती है, तब हम कहते हैं कि 'धो दो, इसे धो दो। इन दागों को धो दो'। तो फिर सभी दागों को धो देता है। प्रतिक्रमण किया तो साफ! प्रश्नकर्ता : अक्रम में यह जो सामायिक करते हैं, उसमें जो पिछले सारे दोष दिखाई देते हैं, तो सामायिक में देखने वाला वह कौन है ? आत्मा या प्रज्ञा? दादाश्री : प्रज्ञा। आत्मा की शक्ति। जब तक आत्मा संसार में काम करता है तब तक वह प्रज्ञा कहलाता है। मूल आत्मा खुद नहीं करता है। प्रश्नकर्ता : आप कई बार सामयिक में बैठाकर त्रिमंत्र बोलने को कहते हैं न, 'पढ़ो, नमो अरिहंताणं करके', तो क्या उस समय आत्मा ही वह पढ़ता है ? और जब हम सत्संग की पुस्तक पढ़ते हैं, आप्तवाणी पढ़ते हैं, वह शुद्ध चित्त पढ़ता है और सामायिक में आत्मा पढ़ता है, वह एक समान ही है? दादाश्री : मूल आत्मा जो पढ़ता है, वह अलग प्रकार का है। यहाँ पर आत्मा कहने के पीछे हमारा भावार्थ क्या है कि रास्ते पर लाने के लिए कहते हैं। ये इन्द्रियाँ नहीं हैं, ऐसा कहना चाहते हैं लेकिन यह मूल आत्मा तो, खुद की बुद्धि क्या कर रही है, मन क्या कर रहा है,
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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