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________________ दादाश्री कहते हैं कि, 'हमारा अहंकार खत्म हो चुका है। मेरा अहंकार खत्म हो चुका है लेकिन बावा अभी भी अहंकारी है। 356 डिग्री वाला, अर्थात् हम में डिस्चार्ज अहंकार है, जिसके आधार पर सभी दैहिक क्रियाएँ होती हैं। दादाश्री कहते हैं कि "दादा भगवान', वे भगवान हैं और दादा, वे भगवान नहीं हैं। दादा भी बावा हैं। अर्थात् ज्ञानी भी बावा और आप भी बावा।" ___दादाश्री एकदम प्यॉर हैं इसलिए सभी को निरंतर याद रहते हैं, नहीं तो कोई याद नहीं रह सकता। 360 डिग्री का ज्ञान प्रकट क्यों नहीं होता? अभी भी बाहर की कितनी रुचि भरी पड़ी है! अभी भी कितनी जगहों पर मीठा लगता है ? दादाश्री जो अक्रम ज्ञान देते हैं, वह 360 डिग्री का पूर्ण केवलज्ञान ही देते हैं लेकिन वह पूरी तरह से पचता नहीं है। दादाश्री को भी 356 डिग्री पर रुक गया। महात्माओं में 200 से बढ़कर 300 तक, 310 तक या 320 तक जाता है! ज्ञानी में और भगवान में क्या फर्क है ? ज्ञानी सबकुछ समझ सकते हैं, देख सकते हैं लेकिन जान नहीं सकते! दादाश्री कहते हैं कि मेरा ज्ञान 356 डिग्री पर रुका हुआ है, यदि 360 डिग्री हो गया होता तो 'मैं' और दादा भगवान एक हो गए होते! लेकिन 356 डिग्री के कारण अलग रहे हुए हैं। इस काल में संपूर्ण प्रकट हो ही नहीं सकता! चौदह लोक के नाथ अर्थात् जो पूर्ण प्रकट हुए हैं, फुल स्केल में हाज़िर हुए हैं, वे! और ऐसे चौदह लोक के नाथ प्रकट हुए हैं इस ए.एम. पेटल में! एक महात्मा दादाश्री से पूछते हैं कि, 'आपमें कौन सा भाग ज्ञानी का है? आप तो आत्मा ही हैं न?' तब परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि, 'खुद जितना आत्म स्वरूप हुआ उतना ज्ञानी। 356 डिग्री वाला ज्ञानी'। 356 डिग्री अंतरात्मा की और 360 डिग्री परमात्मा की! श्रीमद् राजचंद्र ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 'ज्ञानी देहधारी परमात्मा ही कहे 73
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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