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________________ वीज़ा मिल गया! आज्ञा में रहेगा तो सीधा पहुँच जाएगा। इस परदेश में रोज़ कितने हुल्लड़ होते हैं। उसके बजाय निज घर की तरफ जा। जहाँ बेहद ऐश्वर्य है ! निरालंब दशा! वह अद्भुत दर्शन क्या है जो गुप्त स्वरूप से है। ऐसी अद्भुतता दुनिया में अन्य कहीं भी नहीं मिलेगी! शास्त्रों ने उसे लाखों बार अद्भुत कहा है! __ शुरू में शब्द स्वरूप प्राप्त होता है और अंतिम बात है निरालंब! जगत् में सिर्फ आत्मा ही निरालंब है, उसे किसी आधार की ज़रूरत नहीं है। स्वतंत्र! शास्त्र भी अवलंबन रूपी हैं। उन्हें बीच में नहीं छोड़ा जा सकता लेकिन जब मंज़िल आ जाए तब रोड को छोड़ना पड़ता है या नहीं या फिर रोड को घर पर लेकर जाते हैं ? सीढ़ियों को साथ में लेकर क्या ऊपर चढ़ा जा सकता है? भले ही सीढ़ियाँ कितनी भी प्यारी हों लेकिन ऊपर पहुँचने के बाद उन्हें छोड़ना ही पड़ता है न? । __ योगी भी आलंबन वाले होते हैं। आत्मयोगी निरालंबी होते हैं। आत्मयोगी को तो भगवान के आलंबन की भी ज़रूरत नहीं हैं क्योंकि वे खुद ही भगवान बन गए! कृष्ण भगवान आत्मयोगेश्वर कहलाते हैं। योगियों में मन-वचन-काया का योग रहता है। उससे थोड़ी शांति रहती है। दादाश्री कहते हैं कि 'हमें आत्मा का संपूर्ण अनुभव हुआ है। हमने निरालंब आत्मा देखा है और हमें सभी में वैसा ही निरालंब आत्मा दिखाई देता है!' दुनिया के लोग आलंबन के बिना जी ही नहीं सकते और बारबार अवलंबन बदलते ही रहते हैं। _ 'सत्' निरालंब वस्तु है, वहाँ पर 'अवलंबन' लेकर ढूँढने जाएँ तो कैसे मेल पड़ेगा? वह तो, जो निरालंब हैं ऐसे ज्ञानी का अवलंबन लेंगे, तभी काम हो सकेगा। सिर्फ यही एक आलंबन ऐसा है जो निरालंब बनाता है! 53
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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