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________________ आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता: दर्शन में तीन सौ साठ डिग्री हैं, ज्ञान में नहीं आ पातीं इसीलिए यह सब है न ? ४५४ दादाश्री : लेकिन वह पद नहीं माना जाएगा न ! फिर भी श्रीमद् राजचंद्र ने खुले दिल से कहा है कि 'ज्ञानीपुरुष, देहधारी परमात्मा ही हैं ' । ऐसा किसलिए कहा था ? खुद की आबरू बढ़ाने के लिए नहीं इसलिए कि उनके पीछे पड़ोगे तो आपका काम हो जाएगा, नहीं तो काम होगा ही नहीं । देहधारी परमात्मा के प्राकट्य के बिना कभी भी काम नहीं हो सकता । देहधारी के रूप में परमात्मा ही हैं । प्रश्नकर्ता : जब आप कहते हैं कि 'ये ज्ञानीपुरुष हैं' तो इससे क्या संकेत देते हैं आप ? दादाश्री : अंतरात्मा ! वह अंतरात्मा चार डिग्री के बाद में परमात्मा बनने वाला है। मान लो कोई कलेक्टर तो है लेकिन उसका पहला साल हैं, अभी ही कलेक्टर बना है नया-नया और दूसरे किसी की बीस साल से कलेक्टर की नौकरी हो चुकी है, तब वह कमिश्नर बनता है । बीस साल की नौकरी हो गई, कमिश्नर बनने के एक महीने पहले भी वह कलेक्टर था और यह भी कलेक्टर था लेकिन दोनों का एक सरीखा नहीं कहलाएगा। यह तो कल कमिश्नर बन जाएगा और आपको तो अभी देर लगेगी, बीस साल बीतने के बाद । प्रश्नकर्ता : नहीं दादाजी, आप जो कहते हैं कि 'अंदर भगवान बैठे हैं और मैं तीन सौ छप्पन पर हूँ', तब आत्मा तो एक ही है । I दादाश्री : वह रेग्यूलर कहलाता है । ब्योरेवार । अतः ये जो कलेक्टर हैं, वे तो बीस साल तक कलेक्टर रह चुके हैं, इसलिए जानते ही हैं कि न जाने कब मुझे कमिश्नर बना दें, कहा नहीं जा सकता। उसी प्रकार ये ज्ञानी भी जानते हैं कि अपने तीन सौ साठ कब पूरे हो जाएँगे, कहा नहीं जा सकता। अतः खुद अपने पूरे पद को जानते हैं लेकिन अभी जिस पद पर हैं, लोगों को वैसा ही बताते हैं । नीचे कलेक्टर लिखा रहता है । यह वीतरागों का ज्ञान है। ज़रा सा भी गप्प या टेढ़ा-मेढ़ा कुछ नहीं चलता ।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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