SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 534
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' ४५३ दादाश्री : वह सब आपमें भी है। 'चौदह लोक का मालिक प्रकट हुआ', इसका मतलब यह है कि जहाँ फुल स्केल में खुद हाज़िर हो गए हैं। जहाँ पर आवरण नहीं रहा। जो आत्मा को देख सकता है, उसे केवलज्ञान कहते हैं। इसलिए हमने कहा है न कि हमें केवलज्ञान नहीं पचा है। इतना ज्ञान होने के बावजूद भी, पूरी दुनिया हमारे दर्शन में आ गई है लेकिन ज्ञान में नहीं आई है। जबकि केवलज्ञान कैसा होता है? कुछ भी बाकी नहीं रहता। अतः हम समझ गए कि इतनी, इस डिग्री तक आकर रुक गया है अब । यह तीन सौ छप्पन डिग्री तक का तो हमने बता दिया, लेकिन सत्तावन नहीं हो रहा है और हमें करना भी नहीं है। मेरी इच्छा भी नहीं है। मुझे क्या है ? 'हे व्यवस्थित, तुझे गर्ज़ हो तब करना न!' हम तो गाड़ी में बैठ गए, फिर झंझट गाड़ी वाले की! ज्ञानीपुरुष, वही देहधारी परमात्मा प्रश्नकर्ता : आप तो आत्मा हैं तो फिर आपमें कौन सा भाग ज्ञानी है? दादाश्री : जितना आत्मा हुआ, उतना ही ज्ञानी। जितना तीन सौ छप्पन का आत्मा हुआ, उतना ही तीन सौ छप्पन का ज्ञानी। आत्मा ज्ञानी ही है लेकिन उसका आवरण हटना चाहिए। जितना आवरण हटा, तीन सौ साठ डिग्री का हट गया तो संपूर्ण हो जाएगा। तीन सौ छप्पन का हटा तो चार डिग्री का आवरण है। आपको तो और ज़्यादा डिग्री का आवरण है। धीरे-धीरे आपके आवरण टूटते जाएँगे। आवरण टूट जाएँ तो वह खुद ही ज्ञानी है। आवरण की वजह से वह अज्ञानी दिखाई देता है। तीन सौ छप्पन डिग्री अंतरात्मा की और तीन सौ साठ परमात्मा की। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद आप भी अंतरात्मा हो और हम भी अंतरात्मा हैं। हमारी डिग्री तीन सौ छप्पन है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy