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________________ ४०८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : नहीं चलता। सही है। दादाश्री : आत्मा जानने के बाद अगर मंगलदास खा रहे हों तो उनसे कहेंगे, ‘खा लो भाई, धीरे-धीरे खाओ। तड़फड़ाहट न हो उस तरह से', तो मंगलदास भी खुश हो जाएगा कि बहुत अच्छे इंसान है! __ आपका कितना है, बावा का कितना है और मंगलदास का कितना? जो आँखों से दिखाई दे, कानों से सुनाई दे, जीभ से चखा जा सके और जो नाक से सूंघा जा सके वह सब मंगलदास का है। प्रश्नकर्ता : मंगलदास? दादाश्री : जब डॉक्टर काटते हैं, काटने से जिसका पता चलता है, वह भाग मंगलदास है जिसका यों पता नहीं चलता, अनुभव करने वाले को ही पता चलता है, वह सब बावा है। अनुभव करने वाले को क्रोध होता है। जो क्रोध आता है, वह बावा को आता है। मंगलदास को क्रोध नहीं आता। प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : क्रोध-मान-माया-लोभ, सब बावा का है! अपने लोग कहते हैं, 'दादा, मैं शुद्धात्मा हो गया लेकिन अभी तक मुझे क्रोध आता है'। मैंने कहा 'क्रोध बावा को आता है। तुझे नहीं आता'। अतः आपको बावा से कहना है कि 'भाई धीरे से काम लो न तो अपना हल आ जाएगा'। लेकिन हो जाने के बाद कहना। किसी पर चिढ़ जाता है तो समझ जाना और डाँट ले उसके बाद कहना कि 'ऐसा क्यों कर रहे हो? क्या यह अच्छा लगता है आपको?' ऐसा कहने के दो फायदे हैं। एक तो वह ज़रा नरम पड़ जाएगा। अभी तक कोई कहने वाला था ही नहीं न! बेहिसाब कर रहे थे। दूसरा क्या फायदा है ? तो वह यह है कि हम खुद उससे बिल्कुल अलग हैं। यों अपनी शक्ति बढ़ती जाएगी। प्रश्नकर्ता : मेरा बावा आज सत्संग में देर से आया है। मेरा बावा पड़ोसी से व्यवहार करने में रह गया।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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