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________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' ४०७ कि हम सब ज़्यादा से ज़्यादा ज्ञाता-दृष्टा पद में रह सकें। ये तो बावा बन जाते हैं अर्थात् ज्ञान में नहीं रह पाते हैं। दादाश्री : ऐसा है न, जॉब वाला ऊपरी कभी भी शिकायत नहीं करता कि यह लेट हो जाता है ! अरे, क्या मेरे ऐसे आशीर्वाद होते होंगे? ऐसा कुछ करो कि जब हम सो रहे हों तब हमारे अंदर खाना चला जाए। प्रश्न से रुकावट मत डालो। इससे रुकावट हो जाएगी। जो हेल्पिंग हो ऐसी बातचीत करो। अभी ऐसा टाइम नहीं है कि जो चाहे वह पूछते रहें तो चलेगा। अभी अगर बहुत सूक्ष्म बात हो तो करो, बेकार ही टाइम नहीं बिगाड़ना है। आपको कुछ भी नहीं करना है। आपको समझना है कि मंगलदास कौन है और बावा कौन है ? 'मैं कौन हूँ' वह समझ गए? यह जो घोटाला करता है, वह बावा है। जो क्रोध-मान-माया-लोभ करता है, वह बावा है। उस बावा को पहचान गए या नहीं पहचाने आप? फिर अब आपने मुझे क्या करने को कहा, उसे आशीर्वाद देने का कह रहे हो? ऐसा कहना ही नहीं चाहिए। ऐसा कहने से अपना टाइम बिगड़ता है। मेरा टाइम बिगड़ता है, आपका टाइम बिगड़ता है और इस सत्संग का टाइम बिगड़ता है। बावा और मंगलदास की स्पष्टता मंगलदास को आपने पहचाना? चाकू भी मंगलदास को लगता है, जिसे खून निकलता है, वह भी मंगलदास है। दूसरे को क्या झंझट है? मंगलदास को क्यों भूखा मारें? प्रश्नकर्ता : भूख का जो असर होता है, उसका किसे अनुभव होता है ? मंगलदास को या बावा को? दादाश्री : मंगलदास को तो भूख का कोई परिचय है ही नहीं। बावा ही सबकुछ जानता है। मंगलदास में तो कोई ज्ञान है ही नहीं। अगर इंजन में तेल खत्म हो जाए तो इंजन को पता चलता है ?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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