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________________ [६] निरालंब ३४१ प्रश्नकर्ता : निरालंब स्वरूप, जैसा आपको दिखाई देता है वैसा है न! दादाश्री : हाँ। निरंतर सब से अंतिम स्वरूप। निरालंब! प्रश्नकर्ता : ऐसा होना चाहिए न कि हमें खुद को दिखाई दे ? दादाश्री : हाँ, आपको यह शब्द का अवलंबन दिया है, 'मैं शुद्धात्मा हूँ' शब्द के अवलंबन से शुद्धात्मा हो गया और वह अनुभूति हुई, यों मोक्ष के दरवाज़े में घुस गए। उन्हें कोई वापस नहीं निकाल सकता। अगर जान-बूझकर कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं करे तो। अंदर जाकर यदि लड़ाई-झगड़ा करेगा तो वापस निकाल देंगे। वह ठीक से रहे तो हर्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता : इस शब्द अवलंबन के बाद सूक्ष्म दादा से कितनी हेल्प मिलती है? दादाश्री : उस तरफ ले जाएँगे। निरालंब में ले जाएँगे। प्रश्नकर्ता : यह दैहिक निदिध्यासन निरालंब में ले जाएगा? दादाश्री : उन्होंने जितना देखा है, वहाँ तक ले जाएगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन इसमें दैहिक निदिध्यासन ज़्यादा हेल्प करता है या वाणी का निदिध्यासन? दादाश्री : सभी हेल्प करेंगे। हाँ इन्होंने जहाँ तक देखा है, वहाँ तक ले जाएगा। प्रश्नकर्ता : आपको निरालंब दादा भगवान अर्थात् जो मूल स्वरूप दिखाई दिया, वह स्वरूप कैसा है? दादाश्री : यहाँ पर नहीं है, किस आधार पर परिचय दें? प्रश्नकर्ता : क्या वह केवलज्ञान स्वरूप कहलाता है? दादाश्री : लेकिन समझ रूपी, ज्ञान रूपी नहीं, एब्सल्यूट, जिसमें कोई मिक्सचर नहीं है, उस स्वरूप में। आपका तो मिक्सचर वाला है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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