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________________ हमें फाइल नंबर वन को बार-बार कचरा दिखाते रहना है। दिखाने वाले हम और साफ करने वाले वे। इसमें प्रज्ञा अहंकार को दिखाती है और उसे शुद्ध करना है। अहंकार अर्थात् जहाँ पुद्गल और आत्मा, दोनों साथ में हैं। पुद्गल कर्ताभाव से उसमें जुड़ गया और आत्मा ज्ञाता भाव से, खुद ज्ञातापन में आ जाएगा तो मुक्त हो जाएगा और पुद्गल का कर्तापन गया तो वह मुक्त हो जाएगा। जो उल्टा भाव करता है वह पुद्गल है, जो सुल्टा भाव करता है वह भी पुद्गल है और उसे जानने वाला शुद्धात्मा है ! पराक्रम कौन करता है? वह भी पुद्गल करता है। पिछले जन्म में अज्ञानता से जिसे पुरुषार्थ मानते थे, वह आज पराक्रम के रूप में आया है। अतिक्रमण भी पुद्गल करता है और प्रतिक्रमण भी पुद्गल करता है। आत्मा उसका ज्ञाता-दृष्टा है। ___मैला करने वाला भी पुद्गल और साफ करने वाला भी पुद्गल ही है और जो मानता है कि 'मैंने किया', वह अहंकार है और 'मैंने इसमें कुछ भी नहीं किया' उसे शुद्धात्मा कहते हैं। जितना ज्ञान सुना, उस पर श्रद्धा बैठती है लेकिन वह तुरंत थोड़े ही आचरण में आ जाता है? वह निरंतर ध्यान में नहीं रहता। वर्तन हो तो निरंतर ध्यान रहता है। धीरे-धीरे बढ़ता है। साफ करने जाता है और उस रूप हो जाता है। यदि ठपका सामायिक में जुदा नहीं रह पाए तो खुद ठपका (उलाहना, डपटना) देने वाला बन जाता है इसलिए वह खूब डिप्रेशन में आ जाता है। जो दर्शन में आता है, वह जैसे-जैसे अनुभव में आता जाएगा वैसे-वैसे वर्तन में आएगा। पुद्गल क्या कहता है ? 'हम तो शुद्ध ही थे, आपने हमें मैला किया। अब आप तो शुद्ध होकर बैठ गए, अब हमारा क्या? आपने हमें मैला किया, अब आप ही हमें साफ करो।' हमने भाव करके उसे बिगाड़ा 35
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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