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________________ वीतरागता उत्पन्न होने के बाद करुणा उत्पन्न होती है। करुणा वालों को देह का, वाणी का और मन का मालिकीपन नहीं रहता। करुणा आत्मा का गुण नहीं है, वह वीतराग होने का लक्षण है। सहज क्षमा, सहज नम्रता और सहज सरलता, वीतराग में ये सभी गुण होते हैं। ये आत्मा के गुण नहीं हैं। वीतरागता भी आत्मा का गुण नहीं है। यह तो, व्यवहार की वजह से लक्षण उत्पन्न हुए हैं। दादाश्री खटपटिया वीतराग। निःस्वार्थ खटपट । रात-दिन यही खटपट चलती रहती थी कि लोगों को मोक्ष में कैसे ले जाऊँ? इसीलिए उन्हें खटपटिया वीतराग कहा। तीर्थकरों में किंचित्मात्र भी खटपट नहीं होती। दादाश्री कहते हैं, 'मुझे जगत् की कोई चीज़ नहीं चाहिए। लक्ष्मी, विषय, मान या कीर्ति कुछ भी नहीं चाहिए। सिर्फ यही एक भाव रहता है कि जगत् का कल्याण होना ही चाहिए और वह होगा ही। यही हमारा भेख है (किसी ध्येय के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देना)। संपूर्ण वीतरागता, वही शुद्ध प्रेम है। दादाश्री कहते हैं, 'हम प्रेम स्वरूप हो चुके हैं, जैसा जगत् ने कभी भी न देखा हो वैसा प्रेम उत्पन्न हुआ है'। वीतरागता में चार डिग्री कम हैं, चौदस रही इसलिए यह प्रेम लोगों को दिखाई देता है। पूनम वाले वीतराग का प्रेम पूर्ण होता है लेकिन वह दिखाई नहीं देता लेकिन वास्तविक प्रेम तो उन्हीं के प्रेम को कहा जाता है। दादाश्री कहते हैं कि हमें पूनम नहीं हुई हैं लेकिन अंदर खुद के लिए इतनी अधिक शक्ति काम कर रही होती है कि ऐसा लगता है जैसे पूनम हो चुकी हो! [3] मैला करे वह भी पुद्गल, साफ करे वह भी पुद्गल जो वीतराग हैं उनमें शब्द या वाणी नहीं रहती। जड़ और चेतन दोनों संपूर्ण रूप से अलग हो ही चुके होते हैं। भूल करने वाला पुद्गल और भूल को पकड़ने वाला भी पुद्गल और आत्मा तो उसे 'जानने वाला'। हमें भूल पकड़ने वाले क्यों बनना है ? भूल को जानने वाले बनो। 34
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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