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________________ [४] ज्ञान-अज्ञान २४९ अतः हमने उसे विज्ञान कहा। इस काल में वास्तव में विज्ञान ही है लेकिन इसे ज्ञान कहा जा सकता है। लेकिन इस 'ज्ञान' का दुरुपयोग करते हैं इसलिए हमने 'विज्ञान' कहा है। लोग इसे विज्ञान किस प्रकार कहेंगे फिर? ज्ञान में तो हमने भी शास्त्र पढ़े हैं लेकिन शास्त्र पढ़ने वाला ज्ञान नहीं चलेगा। आत्मा का ज्ञान होना चाहिए। शक्कर मीठी है, वह शब्दों से तो सभी जानते हैं लेकिन अगर पूछा जाए कि 'मीठी का मतलब क्या है?' तब क्या कहेंगे? प्रश्नकर्ता : नहीं। वह तो अनुभव की बात है। दादाश्री : हाँ, वह तो जब मैं जीभ पर रख देता हूँ तब। तो हम तो जिसे जीभ पर रखते हैं, उसे मीठा कहते हैं और वे लोग शब्द को मीठा कहते हैं। उससे कुछ बदलेगा? ज़रूरत है विज्ञान स्वरूप आत्मा की ज्ञान कितने प्रकार के हैं? दो प्रकार के ज्ञान हैं। ज्ञान के बिना तो कोई जीव जी ही नहीं सकता। उनमें से एक ज्ञान इन्द्रिय प्रत्यक्ष है और दूसरा अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष। पूरी दुनिया इन्द्रिय प्रत्यक्ष में ही डूबी हुई है। साधु-संन्यासी-आचार्य सभी इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान में हैं। प्रश्नकर्ता : इन दोनों में क्या अंतर है? दादाश्री : ज्ञान स्वरूप आत्मा हमें कोई चेतावनी नहीं देता। जबकि विज्ञान स्वरूप आत्मा तो हमें चेतावनी देता है। आपको कौन सा चाहिए? प्रश्नकर्ता : जो चेतावनी देता है वह आत्मा चाहिए। दादाश्री : तो वैसा आत्मा हम देते हैं। ज्ञान का मतलब क्या है ? ज्ञान अर्थात् यह अच्छा और यह खराब, सत् और असत् का विवेक करवाता है जबकि यह तो विज्ञान है अतः मुक्ति दिलवाता है। केवलज्ञान स्वरूप में, वही लक्ष प्रश्नकर्ता : तो फिर भेदज्ञान को सर्वस्व ज्ञान कह सकते हैं?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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