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________________ २४८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) तब तक आत्मा कहलाएगा ही नहीं। लेकिन फिर भी उसे शब्दों में तो ऐसा ही कहा गया है कि ज्ञान ही आत्मा है। अंत में तो ज्ञान ही आत्मा है लेकिन कौन सा ज्ञान? विज्ञान ज्ञान। ज्ञान दो प्रकार के हैं। जिसे हम जानते हैं लेकिन उसके बावजूद भी कुछ होता नहीं है। फल नहीं आता। पपीता नहीं होता? प्रश्नकर्ता : हाँ जी। दादाश्री : वह पूरा पेड़ होता है। रोज़ पानी पिलाने पर भी फूल आते हैं लेकिन फल नहीं आते। अतः यह ज्ञान, शुष्कज्ञान कहलाता है और जो ज्ञान फल देता है, वह विज्ञान कहलाता है। अतः अपना यह विज्ञान है इसलिए तुरंत ही अंदर काम करता है और चेतावनी देता है। अन्य कोई ज्ञान ऐसा नहीं है जो अंदर चेतावनी दे।। वास्तव में तो ज्ञान ही आत्मा है लेकिन अगर इसे विज्ञान नहीं कहेंगे तो सभी लोग कहेंगे, 'हमारा ज्ञान है न! तो क्या हमारा आत्मा नहीं है ?' 'नहीं! वह नहीं है'। आत्मा तो अंदर कार्यकारी होना चाहिए। उसका फल तो आना चाहिए या नहीं आना चाहिए? प्रश्नकर्ता : फल आना चाहिए। दादाश्री : अफीम खाई जाए तो वह अफीम तुरंत ही फल देगी या नहीं? खाने के थोड़ी देर बाद अफीम झोंके खिलाएगी या नहीं? और अगर इतनी सी शराब पी ले तो? प्रश्नकर्ता : उससे भी झोंके आते हैं। दादाश्री : उससे भी झोंके आते हैं। नहीं? उनका ज्ञान उस प्रकार से फल नहीं देता न! कितने ही समय से शास्त्र पढ़-पढ़कर उसी जगह पर। आगे भी नहीं और पीछे भी नहीं, वही के वही राग-द्वेष। जिससे राग-द्वेष कम हों, उसे ज्ञान कहते हैं। आर्तध्यान-रौद्रध्यान बंद हो जाएँ उसे ज्ञान कहते हैं और जब तक आर्तध्यान-रौद्रध्यान हैं तब तक उसे ज्ञान कैसे कहेंगे?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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