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________________ [३] मैला करे वह भी पुद्गल, साफ करे वह भी पुद्गल १९५ प्रश्नकर्ता : पुद्गल को खराब किसने किया। दादाश्री : 'आपने' खुद ने जो भाव किए, वही भावकर्म! इसी से पुद्गल बन गया। यदि भावकर्म नहीं हुए होते तो यह पुद्गल उत्पन्न ही नहीं होता। पुद्गल को कोई लेना-देना नहीं है। वह बेचारा तो वीतराग ही है। 'आप' भाव करते हो इसलिए तुरंत ही उसका परिणाम आ जाता है। अतः जो परमाणु अशुद्ध हो चुके हैं, उन परमाणुओं को शुद्धता से शुद्ध करना है। इसके अलावा कुछ भी नहीं। जितने डिस्चार्ज बाकी हैं, उतने अशुद्ध रहे हैं। उन्हें भी अगर देख-देखकर जाने दोगे तो शुद्ध होकर चले जाएँगे। परमाणु शुद्ध करने हैं लेकिन किस प्रकार से? हम शुद्धात्मा तो हो गए, अब हमारे पास काम क्या बचा कि ये क्या कह रहे हैं? चंदूभाई क्या कह रहे हैं? पुद्गल कहता है कि 'भाई, हम तो शुद्ध ही थे, आप हमें इस रूप में लाए, इसलिए हमें शुद्ध कर दो। हम जैसे थे वैसा'। प्रश्नकर्ता : तो पुद्गल को शुद्ध करना है वापस? दादाश्री : हाँ, जितना समभाव से निकाल करोगे न, उतना पुद्गल शुद्ध होकर चला जाएगा। प्रश्नकर्ता : जैसे-जैसे हम सभी डिस्चार्ज का समभाव से निकाल करते जाएँगे, वैसे-वैसे सभी पुद्गल परमाणु पवित्र होते जाएँगे? दादाश्री : बस, वे शुद्ध हो ही जाएँगे। पवित्र नहीं, शुद्ध! पवित्र हुए और अपवित्र हुए ऐसा नहीं, लेकिन प्योर, उनके मूल फोर्म में! प्रश्नकर्ता : यह जो बिगड़े हुए परमाणुओं को शुद्ध करके देना पड़ता है, तो वह किस प्रकार से? दादाश्री : कोई गालियाँ दे और हम समता रखें तब उस क्षण सभी परमाणु शुद्ध हो जाते हैं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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