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________________ १९४ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) चेतनभाव वाला पुद्गल हम खुद को जो शुद्धात्मा कहते हैं न, तो यह जो बाहर वाला भौतिक भाग है न, जिसे पुद्गल कहते हैं, तो यह पुद्गल क्या कहता है कि 'हमारा क्या? अब आप शुद्धात्मा बन गए, लेकिन मुक्त नहीं हो सकोगे। जब तक हमारा निबेड़ा नहीं आएगा तब तक आप मुक्त नहीं हो सकोगे'। वह क्या कहता है कि 'जब तक हमें हमारी मूल स्थिति में नहीं लाओगे, तब तक हम आपको छोड़ेंगे नहीं क्योंकि हमारी मूल स्थिति को आपने ही खराब किया है। अब आप ही हमें हमारी मूल स्थिति में लाकर रख दो!' प्रश्नकर्ता : लेकिन वह तो अंदर हम से कहता है कि यह चमड़ी है, खून है, हड्डियाँ है, माँस है, यह पंचभूत से बना हुआ है उसका और हमारा क्या? भाई उससे क्या काम है? दादाश्री : नहीं, नहीं, नहीं। चंदूभाई जीवित है। आप शुद्धात्मा हो और चंदूभाई जीवित है। यह सिर्फ खून-माँस और मवाद का पुतला नहीं है, यह जीवित है। निबेड़ा लाना पड़ेगा इसका तो! प्रश्नकर्ता : हम किसी का खराब नहीं करते, व्यवस्थित है उस अनुसार होता रहता है। दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं चलेगा। यह क्या कहता है कि 'आपने हमें खराब किया है, आपने हमें विकृत बनाया। हम, जो पुद्गल परमाणु शुद्ध थे, प्योर थे, शुद्ध थे, आपने हमें अशुद्ध बनाया, इम्प्योर बनाया, विकृत बनाया'। 'आपने' भाव किए तभी विकृत हुए न! प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, पुद्गल के लिए भला, जड़ के लिए स्वकृति क्या और विकृति क्या? दादाश्री : अंदर पावर चेतन है न! आप अलग हो और यह चेतनभाव वाला पुद्गल अलग है। पुद्गल में पावर चेतन है, वास्तविक चेतन नहीं है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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